सोनागिर-: श्रीराम हमारे लिए आदर्श हैं। श्रीराम के आचार -विचार हमारे अंतःकरण में निवास करने लग जाए तो हमारा जीवन धन्य हो सकता है। भगवान श्री राम के आदर्शों को जीवन में उतारने का संकल्प लें लेना ही हमारे जीवन का ध्येय होना चाहिए। यह मन बेईमान है ,प्रभु तो अपने मार्ग पर चल रहे हैं भक्त अपने मार्ग पर नहीं चल रहे हैं । यह विचार क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने मंगलबार को सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्म सभा मे कही!
मुनि श्री ने एक दृष्टांत सुनाते हुए कहा कि एक राजा के द्वारा कोई पाप हो गया उस पाप का प्रायश्चित करने के लिए वह आश्रम जाते हैं। आश्रम में ऋषि नहीं थे उनका पुत्र था उसने राजा को प्रायश्चित दिया और कहा कि तीन बार राम का नाम ले लो इतने में ऋषि आ जातें है तो राजा उन्हें बताते है तो ऋषि अपने पुत्र से कहते है कि मूर्ख यह क्या किया। इस पर पुत्र कहता है कि आपने ही कहा था कि राम नाम से पाप का नाश हो जाता है। ऋषि कहते हैं कि भगवान राम का एक बार नाम लेने से काम हो सकता है तो तीन बार की क्या आवश्यकता है।
राम ने अपने गृहस्थ जीवन में मर्यादा का कभी उल्लंघन नहीं किया।*मुनिश्री ने कहा कि राम ने अपने गृहस्थ जीवन में मर्यादा का कभी उल्लंघन नहीं किया। उन्होंने राग और द्वेष को अपनी साधना के माध्यम से इतनी ऊंचाई पर ले गए । एक बार भगवान श्रीराम का स्मरण करके देख लो उसमें बहुत शक्ति है। उन्होंने कहा कि रावण जैसा व्यक्ति भी राम के जीवन से प्रभावित था। पारस लोहे को सोना बना देता है ऐसी पवित्र आत्मा को अपने हृदय में धारण करते हो और उसी से पाप भी कर लेते हैं। स्वाभिमान के लिए ऐसा सोचना चाहिए कि जहां इतने पवित्र आत्मा को स्थापित किया। कहीं मन के द्वारा किए पाप से वह अपवित्र न हो जाए। उन्होंने कहा कि श्रावक भगवान के अभिषेक के लिए विशुद्धि का ध्यान रखते हैं पर अंदर की शुद्धि को भी देखो।
मुनिश्री ने कहा कि हमारे मन में जैसी अच्छी-बुरी भावनाएं उत्पन्न होती हैं उसकी छाप हमारे अंतरंग पर पड़ती है। वे ही संस्कार बनकर हमारे अच्छे और बुरी जीवन में संप्रेरक बनते हैं। उसी निमित्त से हमारा अच्छा या बुरा जीवन बनता है। दूसरे शब्दों में यदि हम कहें तो हमारे अच्छे-बुरे संस्कार ही हमारे अच्छे-बुरे जीवन के आधार हैं।