भोपाल ! मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने व्यावसायिक परीक्षा मंडल घोटाले में मुख्यमंत्री और उनके परिजनों की संलिप्तता का आरोप लगाने वाले कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा के खिलाफ आज जिला अदालत में मानहानि का प्रकरण पेश कर दिया। मुख्यमंत्री की ओर से लोक अभियोजक आनंद तिवारी ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुषमा खोसला की अदालत में मानहानि को लेकर परिवाद पत्र पेश किया। सुषमा खेंसला ने इस परिवाद पत्र को अपने पास सुरक्षित रख लिया और मामले की सुनवाई के लिये आगामी 26 जून की तिथि निर्धारित की है। परिवाद पत्र में कहा गया कि 21 जून को मिश्रा ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी में आयोजित पत्रकार वार्ता में कहा था कि उनके पास ऐसे सबूत हैं जिनसे प्रमाणित होता है कि व्यावसायिक परीक्षा मंडल घोटाले में मुख्यमंत्री निवास और मुख्यमंत्री के परिजन शामिल हैं।
परिवाद पत्र के अनुसार मिश्रा का यह भी कहना था कि मुख्यमंत्री के मामा फूलसिंह चौहान के बेटे संजय चौहान के मोबाइल से व्यावसायिक परीक्षा मंडल के नियंत्रक पंकज त्रिवेदी और अधिकारी नितिन महेन्द्रा को अनेक बार फोन किये गये तथा इन अधिकारियों की ओर से भी संजय चौहान को अनेक बार काल किये गये। मुख्यमंत्री की ओर से पेश परिवाद पत्र में मिश्रा द्वारा लगाये गये आरोपों को पूरी तरह गलत बताते हुए कहा गया कि परिवहन विभाग में निरीक्षक पद पर सीधी नियुक्ति नहीं की जाती है बल्कि परिवहन विभाग द्वारा व्यापमं के माध्यम से आरक्षकों की नियुक्ति के लिये परीक्षा आयोजित करवाई गई थी। उन्होंने इन आरोपों को भी गलत बताया कि परिवहन आरक्षक भर्ती परीक्षा में 19 आरक्षक महाराष्ट्र के गोंदिया के हैं। परिवाद पत्र में चयनित परिवहन आरक्षकों की सूची लगाते हुए कहा गया कि इनमें एक भी आरक्षक गोंदिया या मध्य प्रदेश के बाहर का नहीं है। परिवाद पत्र में कहा गया कि मिश्रा द्वारा मुख्यमंत्री के परिजनों द्वारा ठेके दिलाये जाने के संबंध में लगाये गये आरोप में मुख्यमंत्री के मामा का नाम लिया गया जबकि उनके मामा रणधीर सिंह का वर्षों पहले निधन हो चुका है। परिवाद पत्र में यह भी बताया कि व्यावसायिक परीक्षा मंडल घोटाला सामने आने के बाद मुख्यमंत्री ने स्वयं पहल कर विशेष कार्यबल का गठन कर जांच के आदेश दिये थे और यह जांच मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की निगरानी में हो रही है। यह भी बताया गया कि यदि इस मामले में मुख्यमंत्री या उनके परिजनों का हाथ होता तो इसकी जांच के लिये विशेष कार्यबल का गठन नहीं किया जाता बल्कि जांच प्रभावित की जाती। परिवाद पत्र में कहा गया कि इस प्रकार के असत्य मनगढंत और असम्मानजनक आरोपों से उनके मुव्वकिल को मानसिक प्रताडऩा हुई इसलिये आरोपी के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर उन्हें सजा दिलवाई जाये।