भोपाल | मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुए गैस हादसे के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड और डाओ केमिकल के बारे में विकिलीक्स द्वारा किए गए खुलासे की गैस पीड़ितों के संगठनों ने केंद्र सरकार से जांच कराने की मांग की है। गैस पीड़ितों के लिए संघर्षरत पांच संगठनों- डाओ-कार्बाइड के खिलाफ बच्चे, भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ, भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा, भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा, भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एण्ड एक्शन- ने बुधवार को संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में आरोप लगाया कि अमेरिका के दवाब में केंद्र सरकार यूनियन कार्बाइड व डाओ-केमिकल के हित साधन में जुटी है।

विकिलीक्स द्वारा किसिन्जर केबल्स नाम से हाल में किए गए खुलासे के दस्तावेजों के आधार पर संगठनों के नेताओं ने कहा कि तत्कालीन वाणिज्य मंत्री कमलनाथ और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने डाओ की भारत में जिम्मेदारियों के सम्बन्ध में घोषित नीतियों के विरुद्घ जाकर डाओ द्वारा पूंजी निवेश का स्वागत किया है।  गैस पीड़ितों के संगठन भोपाल ग्रुप आफ इंफार्मेशन एण्ड एक्शन के सतीनाथ षडंगी ने जारी दस्तावेजों के आधार पर कहा है कि 27 जुलाई, 2007 को नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास में डिप्टी चीफ मिशन स्टीवन ज़े वाइट द्वारा भेजे गए एक संदेश में यह कहा गया है कि “अक्टूबर 2006 में सी़ ई़ ओ़ फोर्म के कार्यक्रम के दौरान वाणिज्य मंत्री नाथ एवं योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया सहित भारतीय अधिकारियों ने बताया कि वे डाओ द्वारा भारत में पूंजी निवेश का स्वागत करते हैं और वे यह नहीं मानते हैं कि हादसे के स्थल की जहर सफाई की जिम्मेदारी डाओ को उठानी चाहिए।” इसी तरह सितम्बर 2007 के एक संदेश में अमरीकी राजदूत डेविड मलफर्ड द्वारा भारत सरकार को यह कहा गया है कि वह डाओ के खिलाफ अपने दावे वापस ले ले। जवाब में अहलूवालिया ने राजदूत को आश्वासन दिया कि भारत सरकार भोपाल में जहर सफाई की जिम्मेदारी डाओ की नहीं मानती है, पर सक्रिय मुख्य गैर सरकारी संगठनों की वजह से सरकार डाओ के खिलाफ दावों को वापस लेने में असमर्थ है।

इस चिट्ठी के मुताबिक अहलूवालिया ने अमेरिकी राजदूत को सलाह दी है कि वह डाओ केमिकल की भोपाल की जिम्मेदारियों के सम्बंध में वित्त मंत्री चिदम्बरम से बात करें।  पीड़ितों के संगठनों ने बताया कि उपलब्ध चिट्ठियों से यह स्पष्ट होता है कि भारत सरकार ने हिन्दुस्तानियों और भोपालियों के हितों को दरकिनार कर यूनियन कार्बाइड का हित साधा है।  70 के दशक में विदेशी पूंजी के सम्बन्ध में बनाए गए सिद्घांतों से समझौता कर भारत सरकार ने यूनियन कार्बाइड को उसकी भारतीय इकाई पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने में मदद पहुंचाई।  नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास के डिपूटी चीफ मिशन डेविड टी़ श्नाइडर द्वारा चार फरवरी, 1975 को भेजे गए संदेश के हवाले से संगठनों ने बताया कि विदेशी पूंजी पर नियंत्रण रखने वाले फेरा कानून का उल्लंघन करते हुए भारत सरकार ने यूनियन कार्बाइड को इजाजत दे दी कि वह भारतीय बैंक के स्थान पर अमेरिकी एक्सिम बैंक से कर्ज ले।  इतना ही नहीं सितम्बर 1975 में अमेरिकी सरकार के सचिव हेनरी किसिन्जर द्वारा भारत स्थित अमेरिकी दूतावास को भेजे गए एक संदेश से यह पता चलता है कि भोपाल में कारोबार के लिए अमेरिकी एक्सिम बैंक से कर्ज जुटाने में अमेरिकी सरकार ने यूनियन कार्बाइड को मदद पहुंचाई।  गैस पीडितों के लिए संघर्षरत संगठनों ने कहा है कि विकिलीक्स द्वारा उपलब्ध दस्तावेज विश्व के भीषणतम औद्योगिक हादसे में जारी अन्याय की वजहों का खुलासा करने वाले हैं।  उन्होंने कहा कि अमेरिकी और भारतीय सरकारों द्वारा यूनियन कार्बाइड और डाओ केमिकल को पहुंचाई जा रही मदद और कमलनाथ, चिदम्बरम तथा अहलूवालिया जैसे लोगों की वजह से ही आज तक भोपाल गैस पीड़ितों को इन्साफ नहीं मिल पाया है।

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