राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने विविधता और सहिष्णुता को भारत की आत्मा बताते हुए कहा है कि अनेकता में एकता ही भारत की पहचान है। बतौर राष्ट्रपति राष्ट्र के नाम आखिरी संदेश में प्रणव मुखर्जी ने देश में बढ़ती हिंसा पर गहरी चिंता जताई।
उन्होंने कहा कि हमारा देश विविधताओं से भरा देश है, जिसमें अलग-अलग विचारों को नाकारा नहीं जा सकता। इस दौरान उन्होंने एक आधुनिक देश के लिए तर्क और आंतरिक समीक्षा को बेहद जरूरी बताया और मजबूत लोकतंत्र के लिए विकास और नीतियों का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने पर जोर दिया।
गौरतलब है कि रविवार को संसद भवन में अपने विदाई समारोह के दौरान राष्ट्रपति ने अध्यादेशों की बाढ़ के लिए सरकार को तो संसद में हंगामे के लिए विपक्ष को नसीहत दी थी।
राष्ट्रपति ने हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति पर गहरी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि हम रोज अपने आसपास हिंसा में बढ़ोत्तरी देख रहे हैं। जबकि हमें पता है कि हिंसा का हृदय अंधकार, अविश्वास और डर है। संवाद को हिंसा से मुक्त बनाने की जरूरत है।
सहिष्णुता और विविधता भारत की आत्मा
देश के नागरिकों को हर तरह की हिंसा बचाना होगा चाहे वह शारिरिक हो गया मौखिक। कोई भी राष्ट्र आधुनिक तभी बन सकता है जब सभी नागरिकों को समान अधिकार, सभी मतों को समान आजादी, सभी धर्मों के साथ समानता और आर्थिक समानता हो। उन्होंने कहा कि वास्तविक विकास का पैमाना इसका लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा नहीं है। सहिष्णुता और विविधता इसकी आत्मा है। हमारे देश के पास हजारों साल के विचारों का इतिहास, दर्शन, बौद्घिकता और अनुभव है। अलग-अलग मत, अलग-अलग संस्कृति, विश्वास, भाषा भारत को खास बनाता है। इनमें सहिष्णुता हमारी ताकत है। सहमति-असहमति के बावजूद हमें तर्क करना चाहिए। हम अलग-अलग विचारों को नकार नहीं सकते। ऐसा नहीं होने पर हमारी सोच का मौलिक चरित्र गायब हो जाएगा।
राष्ट्रपति ने अपने संदेश में पर्यावरण रक्षा पर भी जोर दिया। इस दौरान विश्वविद्यालयों की स्थिति पर चिंता जाहिर की और कहा कि विश्वविद्यालयों को महज नोट्स बनाने का माध्यम बन कर नहीं रह जाना चाहिए। राष्ट्रपति ने भावी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को शुभकामनाएं दीं। अपने 50 साल के सार्वजनिक जीवन में संविधान को अपना ग्रंथ बताया।