कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतगणना जारी है। 222 सीटों के रुझानों में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिल रहा और कांग्रेस करीब आधी सीटों पर ही सिमट रही है। भाजपा 111, कांग्रेस 71, जेडीएस 38 व अन्य दो सीटों पर आगे है। इस बीच, बेंगलूरू और दिल्ली में भाजपा कार्यालय में जश्न मनाया जा रहा है। भाजपा मुख्यालय में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और निर्मला सीतारण ने भी जश्न मनाया। इधर, कर्नाटक चुनाव के नतीजे से सेंसेक्स में 400 अंक से ज्यादा का उछाल आया है। दक्षिण में भाजपा की जीत से 2019 में मोदी की राह आसान हो सकती है। यानि यह मानना पड़ेगा कि देश में मोदी की लहर बरकरार है। वहीं, कांग्रेस की हार से राहुल गांधी के नेतृत्व को फिर से झटका लग सकता है। कांग्रेस सिर्फ तीन राज्यों पंजाब, मिजोरम और पुडुचेरी तक ही सिमट कर रह जाएगी।
भाजपा को बहुमत मिलने पर येद्दियुरप्पा होंगे कर्नाटक के अगले सीएम
भाजपा अगर बहुमत का आंकड़ा हासिल करने में कामयाब रही तो स्पष्ट तौर पर बीएस येद्दियुरप्पा ही कर्नाटक के अगले मुख्यमंत्री होंगे। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर पार्टी किसी दलित चेहरे को उपमुख्यमंत्री भी बना सकती है। अगर दो-चार सीटें कम पड़ीं तो निर्दलीय विधायकों का समर्थन जुटाया जा सकता है।

कांग्रेस को बहुमत मिलने पर सिद्दरमैया होंगे राज्य के सीएम
कांग्रेस को बहुमत मिला तो इस बात में कोई संदेह नहीं है कि सिद्दरमैया ही राज्य के मुख्यमंत्री बने रहेंगे। ऐसे में दलित मुख्यमंत्री की मांग के मद्देनजर पार्टी किसी दलित को उपमुख्यमंत्री बना सकती है। एक संभावना किसी लिंगायत को उपमुख्यमंत्री बनाने की भी है। अगर पार्टी बहुमत के आंकड़े से दो-चार सीटें पीछे रह गई तो निर्दलीय विधायक ही उसका सहारा बनेंगे।
भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी तो जदएस के समर्थन की जरूरत होगी
इस स्थिति में भाजपा को जदएस के समर्थन की जरूरत होगी। अगर जदएस 40-50 सीटें हासिल करने में सफल रहा तो 30-30 (आधा-आधा कार्यकाल) फॉर्मूले पर सहमति बन सकती है। लेकिन तब भी भाजपा पहला कार्यकाल जदएस को देने पर शायद ही सहमत हो क्योंकि पूर्व में कुमार स्वामी भाजपा के साथ समझौता करके उससे मुकर चुके हैं।

कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी तो निर्दलीय विधायकों के समर्थन की भी दरकार होगी
ऐसी स्थिति में पार्टी को जदएस के साथ-साथ निर्दलीय विधायकों के समर्थन की भी दरकार होगी। हालांकि सरकार गठन की शर्ते जदएस के संख्या बल पर निर्भर करेंगी। इसके अलावा जदएस से कटुतापूर्ण संबंधों के कारण सिद्दरमैया मुख्यमंत्री नहीं बन सकेंगे और कांग्रेस को मुख्यमंत्री पद के लिए नया चेहरा तलाशना होगा। सियासी हलकों में चर्चा तो यह भी है कि चूंकि कांग्रेस और जदएस दोनों का ही प्रभाव पुराने मैसुरु क्षेत्र में है इसलिए संभव है जदएस कांग्रेस के साथ न जाए।

जश्न मनाते भाजपाई।

भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए जदएस को बाहर से समर्थन दे सकती है कांग्रेस
एक संभावना एचडी कुमार स्वामी के नेतृत्व में जदएस सरकार बनने की भी है। जिसे भाजपा या कांग्रेस बाहर से समर्थन दें। भाजपा 2019 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर जदएस का समर्थन करने पर सहमत हो भी सकती है। इसी तरह, कांग्रेस भी भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए जदएस को बाहर से समर्थन दे सकती है। इसके अलावा उसका यह कदम 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए विपक्षी दलों के महागठबंधन में भी सहायक होगा।

गोवा, मणिपुर से सबक लेकर कांग्रेस ने शीर्ष नेताओं को भेजा कर्नाटक
गोवा, मणिपुर और मेघालय से सबक लेकर कांग्रेस ने अपने शीर्ष नेताओं को मतगणना से पूर्व ही कर्नाटक भेज दिया है। उक्त तीनों ही राज्यों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई थी।सूत्रों ने बताया कि वरिष्ठ पार्टी नेता गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत बेंगलुरु पहुंच गए हैं। वहां पहुंचकर उन्होंने मुख्यमंत्री सिद्दरमैया और अन्य पार्टी नेताओं से मुलाकात की।

अगर पार्टी बहुमत हासिल करने में असफल रही तो दोनों नेता जदएस के प्रमुख एचडी देवेगौड़ा और उनके पुत्र कुमार स्वामी से भी भेंट करेंगे। बतातें है कि पार्टी जदएस नेतृत्व के साथ लगातार संपर्क में है। कांग्रेस नेतृत्व ने दोनों नेताओं को इसलिए भेजा है कि कर्नाटक में अगली कांग्रेस सरकार के गठन में कोई कोर कसर न छूट जाए। कर्नाटक के प्रभारी महासचिव केसी वेणुगोपाल भी राज्य के प्रभारी सचिवों के साथ कर्नाटक में ही मौजूद हैं।

विधानसभा चुनावों में सबसे खर्चीला रहा कर्नाटक चुनाव
देश के विधानसभा चुनावों के इतिहास में हाल में संपन्न कर्नाटक चुनाव राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों द्वारा किए खर्च के मामले में सबसे महंगा साबित हुआ है। थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज’ (सीएमएस) ने अपने सर्वेक्षण में यह दावा किया है। सीएमएस के मुताबिक, विभिन्न राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों द्वारा किया गया खर्च 9500 से 10500 करो़ड़ रुपये के बीच रहा। 2013 के पिछले विधानसभा चुनावों में किए गए खर्च से यह दोगुने से भी ज्यादा है। इस खर्च में प्रधानमंत्री द्वारा किए गए प्रचार का खर्च शामिल नहीं है।
सीएमएस द्वारा पहले किए गए पिछले करीब 20 साल के सर्वेक्षण में यह बात सामने आ चुकी है कि कर्नाटक में चुनावी खर्च देश के अन्य राज्यों की तुलना में सामान्यत: अधिक ही रहता है। चुनावी खर्च के लिहाज से कर्नाटक के बाद आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु का स्थान है।

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