राफेल डील में कथित घोटाले और गड़बड़ी के कांग्रेस पार्टी के आरोपों के बीच नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेज दी है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां राफेल डील को लेकर सरकार पर हमलावर हैं। सूत्रों ने बताया है कि सरकार आज कैग की रिपोर्ट संसद में रखेगी। सूत्रों की मानें तो संसद में रखी जाने वाली CAG रिपोर्ट में राफेल की कीमत का जिक्र नहीं होगा।
दरअसल, CAG अपनी रिपोर्ट की एक कॉपी राष्ट्रपति के पास और दूसरी कॉपी वित्त मंत्रालय के पास भेजते हैं। बताया गया है कि CAG ने राफेल पर 12 चैप्टर लंबी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। आपको बता दें कि कुछ हफ्ते पहले ही रक्षा मंत्रालय ने राफेल पर विस्तृत जवाब और संबंधित रिपोर्ट CAG को सौंपी थी, जिसमें खरीद प्रक्रिया की अहम जानकारी के साथ 36 राफेल की कीमतें भी बताई गईं थीं।
कैग की यह रिपोर्ट काफी लंबी है, जिसे प्रोटोकॉल के तहत सबसे पहले राष्ट्रपति के पास भेजा गया है। अब राष्ट्रपति भवन की ओर से CAG रिपोर्ट लोकसभा स्पीकर के ऑफिस और राज्यसभा चेयरमैन के ऑफिस को भेजी जाएगी। सूत्रों ने बताया है कि सरकार कैग की रिपोर्ट मंगलवार को संसद में रखेगी। मौजूदा 16वीं लोकसभा का वर्तमान सत्र बुधवार को समाप्त हो रहा है और यह इसका आखिरी सत्र है। अप्रैल-मई में आम चुनाव के बाद 17वीं लोकसभा का गठन होगा।
राफेल पर नियम बदले? टीम हेड का जवाब
मीडिया रिपोर्ट में सोमवार को किए गए दावे के बीच भारतीय पक्ष की तरफ से राफेल वार्ता का नेतृत्व करने वाले एयर मार्शल SBP सिन्हा ने जवाब दिया है। समाचार एजेंसी ANI से बातचीत में उन्होंने कहा कि एक पॉइंट को साबित करने के लिए कुछ नोट्स सिलेक्टिव तरीके से उठाए जा रहे हैं। उन्होंने साफ कहा कि इनमें सच्चाई नहीं है। भारतीय टीम ने जो अपनी अंतिम रिपोर्ट दी है उस पर सभी 7 सदस्यों ने बिना किसी असहमति के हस्ताक्षर किए हैं।
सरकार से सरकार के बीच कॉन्ट्रैक्ट में ऐंटी-करप्शन क्लॉज पर एयर मार्शल सिन्हा ने कहा कि अब तक हमारा अमेरिका और रूस के साथ ‘सरकार से सरकार के बीच’ कॉन्ट्रैक्ट था। यह तीसरा ‘सरकार से सरकार’ कॉन्ट्रैक्ट है, जो फ्रांस के साथ हुआ। ऐसा क्लॉज इनमें से किसी के साथ नहीं था।
आपको बता दें कि सोमवार को एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि सरकार ने समझौते पर दस्तखत से कुछ दिन पहले ही मानक रक्षा खरीद प्रक्रिया में भ्रष्टाचार के खिलाफ पेनल्टी से जुड़े अहम प्रावधानों को हटाया था। न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल ने सितंबर 2016 में इन्टर-गवर्नमेंटल अग्रीमेंट, सप्लाइ प्रोटोकॉल्स, ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट्स और ऑफसेट शेड्यूल में 9 बदलावों को मंजूरी दी।
…तो क्या UPA सरकार में ही बदला था नियम?
वहीं, एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट में आधिकारिक सूत्रों के हवाले से बताया गया कि यूपीए सरकार ने ही नियम बनाया था कि मित्र देशों के साथ इंटर-गवर्नमेंटल अग्रीमेंट के दौरान स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रसीजर में मामले में कुछ शर्तों से छूट ली जा सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार ने यूपीए सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का ही पालन किया है।