भोपाल। राज्य के भ्रष्ट अफसरों से अब पुलिस सीधे पूछताछ नहीं कर सकेगी ना ही जांच शुरु कर सकेगी। इसके लिए पहले राज्य शासन की अनुमति जरूरी होगी। सामान्य प्रशासन विभाग ने इसके आदेश जारी कर दिए हैं। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में धारा 17 ए जोड़ी गई है। इसके चलते अब पुलिस को शासकीय अधिकारी और कर्मचारी के विरुद्ध जांच या पूछताछ या अन्वेषण शुरु करने के लिए राज्य शासन की अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। सामान्य प्रशासन विभाग ने राज्य के सभी सरकारी महकमों के विभागाध्यक्ष, संभागायुक्त और कलेक्टरों को इस संबंध में निर्देश जारी कर दिए है।
सभी से कहा गया है भ्रष्टाचार में लिप्त अफसर द्वारा शासकीय कार्य के दौरान अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन पालन में कोई सिफारिश की गई हो या कोई निर्णय लिया गया हो और उसमें भ्रष्टाचार पाया गया हो तो इस अपराध की जांच,अन्वेषण या पूछताछा करने के लिए जांच एजेंसियों को इस भ्रष्टाचार से जुड़े सभी दस्तावेज संबंधित सरकारी विभाग को भेजना होगा। विभाग उसका परीक्षण कर उसपर अपना स्पष्ट अभिमत समन्वय में प्रस्तुत करेगा। इसके बाद जांच एजेंसी को इस मामले में जांच और पूछताछ के लिए पूर्वानुमति दी जा सकेगी। यदि विभाग पूछताछ की अनुमति नहीं देता है तो जांच एजेंसियां संबंधित अधिकारी से पूछताछ भी नहीं कर पाएंगी।
अफसर की शिकायत आने पर लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू फोन पर या नोटिस जारी कर सीधे बयान के लिए बुला लेती थी। कई बार तो सरकार को पता ही नहीं चलता था और इन जांच एजेंसियों की जांच भी पूरी हो जाती थी।
ऐसे मामलों में अक्सर जांच एजेंसियां आरोप के घेरे में आती थी। किसी अफसर के खिलाफ प्रमाणसहित यदि जांच एजेंसियों को जानकारी मिलती है तो उससे पूछताछ शुरु करने के पहले संबंधित विभाग को जानकारी देकर वहां से पुर्वानुमति जरूरी होगा।