जयपुर। लड़कियों को कोई लाड़ प्यार नहीं करता है। जब घर में लड़के का जन्म होता है तो उत्सव मनाया जाता है। बच्चियों के जन्म पर कोई कुछ नहीं करता, बल्कि पूरा घर नाराज़ हो जाता है। कई बार तो लोग डॉक्टरी जांच करा कर बच्चियों को कोख में ही मरवा देते हैं।”

यह बड़े गर्व और ख़ुशी के साथ एक वेब चैनल को बताते हैं किसान मदन प्रजापत।उन्हें ख़ुशी इस बात की है कि उनके परिवार में 35 साल बाद लड़की का जन्म हुआ है और गर्व इस बात का कि इस ख़ुशी को उन्होंने एक उत्सव की तरह मनाया। आज उनके गांव से लेकर राजस्थान भर में उनकी एक प्रेरणीय पहल की चर्चा है।

मदन प्रजापत ने क्या कियाराजस्थान में नागौर जि़ले के नीम्बड़ी चांदवता गांव के 55 वर्षीय किसान मदन प्रजापत के परिवार में 35 साल बाद बेटी का जन्म हुआ है। वो बताते हैं कि उनके एक बेटी और एक बेटा है। बड़ी बेटी कऱीब 35 साल की है और 21 वर्षीय बेटे हनुमान प्रजापत की बीते साल ही शादी हुई थी। बेटे की पत्नी चुकी देवी ने दो अप्रैल को बेटी को जन्म दिया। परिवार ने बेटी का नाम सिद्धि रखा। नागौर जि़ला अस्पताल में जन्मी बच्ची को वहां के रिवाजों के अनुसार, चुकी देवी के मायके हरसोल गांव ले जाया गया। यहीं से मदन प्रजापत ने ठान लिया कि उनकी पोती और साढ़े तीन दशक बाद परिवार में जन्मी बच्ची का घर में प्रवेश त्योहार की तरह मनाया जाएगा। सप्ताह भर पहले से ही इसकी तैयारियां शुरू कर दी गईं। किसान मदन प्रजापत ने इसको यादगार बनाने के लिए तय किया कि वह अपनी पोती को हरसोल से नीम्बड़ी यानी अपने घर तक हेलीकॉप्टर से लाएंगे। हेलीकॉप्टर के लिए विभिन्न प्रयास किए गए। परमिशन लेने के लिए वह जि़ला कलेक्टर के पास गए।नागौर के जि़ला कलेक्टर डॉक्टर जितेंद्र कुमार सोनी ने बीबीसी को फ़ोन पर बताया, “मदन प्रजापत हमारे पास आए और हेलीकॉप्टर की परमिशन मांगी। हमने उनको कोविड गाइडलाइंस का पालन करने की हिदायत के साथ परमिशन दी।”रामनवमी के दिन बच्ची के ननिहाल हरसोल से निम्बड़ी चांदावता की यात्रा हेलीकॉप्टर से 10 मिनट में पूरी हो गई। यहां पलक पाँवड़े बिछाए गांव और परिवारजन बच्ची का इंतज़ार कर रहे थे। बच्ची के पहुंचते ही फूलों से उसका स्वागत किया गया। घर पर पूरे रीति-रिवाज से प्रवेश कराया गया, महिलाएओं ने पारंपरिक गीतों से स्वागत किया। कार्यक्रम में मौजूद सभी मेहमानों को यहां बेटा-बेटी एक समान का पाठ ज़रूर सीखने को मिला।

लोगों को अच्छा संदेश मिलासामाजिक कार्यकर्ता राजन चौधरी कई दशक से लिंगानुपात को लेकर राजस्थान में कार्य कर रहे हैं। वो इस परिवार में बच्ची को मिले सम्मान से बेहद ख़ुश हैं। वो कहते हैं, “इस तरह की सोच समाज में विकसित हो जाएगी तो बेटियों को बचाने के लिए किसी तरह के प्रयास करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। इससे बेटियों को बराबरी का दर्जा व सम्मान मिला है। यह बेहतरीन और प्रशंसनीय है, राजस्थान में पहली बार ऐसा पहला वाकय़ा देखने को मिला है। चुकी देवी के मायके हरसोल गांव के निवासी शिवेंद्र इस क़दम को प्रेरणीय बताते हैं। वो कहते हैं, “हमें खुशी है कि हमारे गांव के एक परिवार ने यह उदाहरण दिया है कि लड़के और लड़की के जन्म पर ख़ुशी बराबर होनी चाहिए। मदन प्रजापत बताते हैं कि, जब बच्ची को हेलीकॉप्टर से लेकर हरसोल से अपने गांव नीम्बड़ी पहुंचे तो गांव वाले बहुत ख़ुश थे। सभी की ज़ुबान पर बस यही शब्द थे कि ऐसा कभी नहीं हुआ। वह कहते हैं, बच्चियों के साथ भी ऐसा होना चाहिए। नागौर जि़लाधिकारी डॉक्टर जितेंद्र कुमार सोनी ख़ुद बेटियों के लिए कई तरह के प्रयास जि़ले में करते आ रहे हैं, जिससे लोगों में भी जागरूकता बढ़ी है। वो कहते हैं, “इससे लोगों में अच्छा संदेश गया है। चुकी देवी स्वयं कितनी ख़ुश होंगी कि उन्होंने परिवार को 35 साल बाद बच्ची दी है। वह आज प्राउड मदर हो गई हैं।”

परिवार में कोई आठवीं कक्षा तक भी नहीं पढ़ाकहावत है कि ‘शिक्षा के बिना मनुष्य पशु समान है।’ लेकिन इस परिवार ने मानवीयता और बराबरी की जो मिसाल पेश की है वह प्रशंसनीय है। नवजात बच्ची सिद्धि के दादा मदन प्रजापत सातवीं कक्षा तक पढ़े हैं। हमेशा से खेती ही परिवार का मुख्य पेशा रहा है। उनकी पत्नी मुन्नी देवी तो कभी स्कूल ही नहीं गईं। बच्ची सिद्धि के पिता हनुमान प्रजापत आठवीं कक्षा तक पढ़े हैं और उनकी पत्नी चुकी देवी ने भी स्कूली शिक्षा पूरी नहीं की है। वह बताते हैं कि हमारे पास 100 बीघा ज़मीन है और माता-पिता के साथ ही हम मिलकर खेती करते हैं। नवजात बच्ची के नाना पांचाराम प्रजापत ने बताया कि वह ख़ुद आठवीं तक पढ़े हैं और उनकी बेटी चुकी देवी तीसरी कक्षा तक ही पढ़ी हैं। बच्ची की नानी चंपा देवी दूसरी कक्षा तक पढ़ी हैं। चुकी देवी के मायके में भी सभी खेती-किसानी करते हैं और ससुराल में भी किसानी ही मुख्य पेशा है। दोनों ही परिवारों में कोई भी आठवीं से ज़्यादा नहीं पढ़ा है। लेकिन, इन परिवारों ने लड़की-लड़के के भेदभाव की बेडिय़ों को तोड़कर जो मिसाल पेश की है, उसकी चारों ओर चर्चा है।

बच्ची का अच्छा भविष्य ही उद्देश्य’बच्ची सिद्धि के पिता हनुमान प्रजापत कहते हैं, “लोग बेटियों को कोख में ही मार डालते हैं। मेरा मानना है कि लड़कियों की भी जि़न्दगी होती है। वह कुछ करना चाहती हैं, उनको अवसर देना चाहिए। यानी कि वह अपनी बेटी सिद्धि को अच्छी शिक्षा और पूर्ण स्वतंत्रता के साथ कामयाब भविष्य देना चाहते हैं। परिवार प्रसन्नता के साथ अब सिद्धि की देखभाल में जुटा हुआ है। दादा मदन प्रजापत कहते हैं कि, “बच्ची की अच्छी पढ़ाई लिखाई कराऊंगा और इसकी हर इच्छा पूरी करने का प्रयास करूंगा। बच्ची को इतना लाड़ प्यार देंगे। स्वयं परिवार का कोई भी सदस्य भले ही स्कूली शिक्षा पूरी नहीं कर सका हो, लेकिन वह अपने परिवार में आई इस बच्ची को अच्छी शिक्षा और परवरिश देने के लिए अभी से तैयार हैं।

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