भोपाल ! केंद्र प्रवर्तित योजनाओं के लिए बने नीति आयोग के उपसमूह की मध्यप्रदेश की बैठक गुरुवार को राजधानी भोपाल में हुई, जिसमें विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों ने एकमत होकर सुझाव दिया है कि इन योजनाओं में केंद्र का हिस्सा 50 फीसदी से कम नहीं होना चाहिए। नीति आयोग के उपसमूह की तीसरी बैठक में केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के स्वरूप और फंडिंग के बारे में अंतिम दौर का विचार-विमर्श किया गया। राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सुझावों पर सिफारिशें तैयार कर ली गई हैं। उपसमूह की अंतिम बैठक दिल्ली में 13 जून को होगी। इसके बाद उपसमूह अपनी अनुशंसाओं का प्रतिवेदन नीति आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपेगा।
उपसमूह के अध्यक्ष मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैठक में कहा कि उपसमूह द्वारा राज्यों को मजबूत बनाने और उनकी अपेक्षाओं के साथ और केंद्र के संसाधनों की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए अनुशंसाएं की जाएंगी। पूरे देश के प्रतिनिधित्व के साथ अनुशंसाएं करते समय राज्यों के साथ राष्ट्र के हित का ध्यान रखा जाएगा।
इस बैठक में हिस्सा लेने वाले राज्यों के प्रतिनिधि एक बात पर सहमत थे कि केंद्र प्रवर्तित योजनाओं में केंद्र का हिस्सा पचास प्रतिशत से कम नहीं हो। इन योजनाओं में फंडिंग पैटर्न कम से कम पांच साल तक एक जैसा हो तथा केंद्र प्रवर्तित क्षेत्र की आधारभूत योजनाओं की संख्या 20 से 25 के बीच हो।
कहा गया कि शेष योजनाओं के विकल्प उपलब्ध रहें। एक योजना में कई घटक हों और राज्य हर घटक अपनाने को बाध्य नहीं हों। केंद्र प्रवर्तित क्षेत्र में लगभग 25 प्रतिशत लेक्सी फंड हो। इससे राज्यों को प्राथमिकताओं वाले क्षेत्र में धनराशि खर्च करना आसान होगा।
राज्यों का सुझाव है कि केंद्र प्रवर्तित योजना में अप्रैल और अक्टूबर माह में दो किश्त में राशि मिले। पहले से चल रही अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए वर्ष 2017 तक केंद्र राशि उपलब्ध कराए। राज्यों की दीर्घकालीन योजना निर्माण में नीति आयोग मदद करे। नीति आयोग ऐसा प्लेटफार्म उपलब्ध कराए, जहां राज्य अपनी समस्याओं पर विचार कर सकें तथा नवाचारों को आपस में साझा कर सकें।
इस बैठक में हिस्सा ले रहे तेलंगाना के मुख्यमंत्री क़े चंद्रशेखर राव ने कहा कि किसी भी कीमत पर राज्यों पर भार नहीं आना चाहिए और राज्य के हिस्से में कमी नहीं होना चाहिए। केंद्र की योजनाओं में केंद्र का योगदान 80 प्रतिशत से कम नहीं होना चाहिए, भले ही ऐच्छिक योजनाओं में से कटौती करना पड़े। उन्होंने कहा कि वित्तीय जवाबदारी एवं बजट प्रबंधन अधिनियम से अपेक्षाएं हैं। वित्तीय व्यवस्थापन के संबंध में भी जल्दी निर्णय लेना होगा।
नगालैंड के मुख्यमंत्री टी़ आऱ झेलियांग ने बैठक में कहा कि उत्तर पूर्व के प्रदेशों का केंद्रीय योजनाओं में विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। बीआरजीएफ (बैकवर्ड रीजन ग्रांट फंड) जैसी योजना जारी रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि पुलिस आधुनिकीकरण भी जारी रखना होगा। नगालैंड जैसे उत्तर-पूर्वी राज्यों को विशेष दर्जा जारी रखते हुए मदद करने की पहल होना चाहिए।
केरल के मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने तटीय राज्य होने के कारण विशेष केंद्रीय योजनाएं बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि नए फंडिंग पैटर्न के कारण राज्यों को नुकसान नहीं होना चाहिए। जितना राज्यों को पहले मिल रहा था उससे कम नहीं होना चाहिए। राज्य की लोन (ऋण) लेने की सीमा बढ़ाई जानी चाहिए।
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि बीआरजीएफ को दो साल तक बढ़ाया जाना चाहिए, जिससे फंड का पूरा उपयोग किया जा सके। उन्होंने कहा कि समृद्ध राज्यों को केंद्रीय योजनाओं में ज्यादा हिस्सेदारी देने का फार्मूला होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जनवरी के बाद केंद्रीय योजनाओं में राशि नहीं दी जाना चाहिए क्योंकि वित्तीय वर्ष समाप्त होने से पहले व्यावहारिक रूप से पूरा-पूरा उपयोग नहीं हो पाता।
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री नाबम तुकी का मानना था कि केंद्रीय योजनाओं की राशि दो किश्तों में दी जाना चाहिए। पहली किस्त मई में और दूसरी किस्त नवंबर में। अंडमान निकोबार के लेटिनेंट गवर्नर ए़ के. सिंह ने कहा कि हर केंद्र शासित प्रदेश की अलग-अलग जरूरतें होती हैं, इसलिए इनके लिए अलग फंडिंग पैटर्न अपनाने की जरूरत है।
इस बैठक में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद अपनी व्यस्तताओं के कारण हिस्सा नहीं ले पाए।