भोपाल | मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में लगभग तीन दशक पहले हुए यूनियन कार्बाइड गैस हादसे के बाद संयंत्र परिसर में सुरक्षित रखे 350 टन जहरीले कचरे को नष्ट करने की तो राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा होती है, मगर परिसर के बाहर फैले 20 हजार टन से ज्यादा जहरीले कचरे को लोगों ने भुला दिया है। भोपाल में कीटनाशक बनाने वाले यूनियन कार्बाइड संयंत्र से तीन-चार दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात रिसी जहरीली गैस ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था, वहीं हजारों लोगों को पूरी जिंदगी के लिए मरीज बना दिया था।

इस हादसे के बाद अब तक विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं संयंत्र और उसके आसपास की मिट्टी और भूजल की स्थिति पर 15 अध्ययन कर चुकी हैं। इन अध्ययनों से एक बात पूरी तरह साफ हो चुकी है कि संयंत्र परिसर व उसके बाहर जमा जहरीले कचरे के चलते मिट्टी व भूजल बुरी तरह प्रदूषित हैं। इन्हीं अध्ययनों के आधार पर सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरमेंट (सीईसी) ने विभिन्न विशेषज्ञों के साथ दिल्ली में दो दिवसीय बैठक कर एक कार्ययोजना तैयार की है। इस कार्य योजना को गुरुवार को भोपाल में आयोजित कार्यशाला में जारी किया गया। इस रिपोर्ट के मुताबिक आगामी पांच वर्षो में मिट्टी और जल के बढ़ते प्रदूषण को रोका जा सकता है। इसके लिए कई चरणों में काम करना होगा। भोपाल में आयोजित कार्यशाला में बताया गया कि 350 टन जहरीले कचरे को नष्ट करने के लिए प्रयास जारी हैं। यह कचरा सुरक्षित रखा हुआ है, मगर संयंत्र परिसर व सोलर एवोपरेशन पांड (एसईपी) में जमा जहरीले कचरे की कोई चर्चा तक नहीं करता। गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के अब्दुल जब्बार ने बताया कि एसईपी में संयंत्र से निकलने वाले कचरे को जमा किया जाता था, यह लगभग 32 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। एसईपी में जमा तरल तो सूर्य के प्रकाश में उड़ जाता था, मगर शेष भारी पदार्थ नीचे जमा होते गए। संयंत्र के बंद होने के बाद एसईपी के ऊपर मिट्टी डालकर जहरीले कचरे को दबा दिया गया है। लीज की अवधि पूरी होने के बाद यह जमीन संबंधित काश्तकारों को 1994-95 में वापस लौटा दी गई। आज इस क्षेत्र में सैकड़ों मकान बन चुके हैं। यहां के लोग जहरीली मिट्टी व पानी के बीच रहने को मजबूर हैं। जहरीले कचरे के ऊपर बिछी मिट्टी पर इस इलाके में बच्चे क्रिकेट खेलते हैं। जब्बार के मुताबिक संयंत्र परिसर व एसईपी में लगभग 20 हजार टन जहरीला कचरा जमा है, जिसके चलते मिट्टी व पानी लगातार प्रदूषित हो रहा है। इसके लिए आवाज उठी मगर उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। सीएसई के उप महानिदेशक चंद्र भूषण ने कार्यशाला में बताया है कि बीते 20 वर्षो में हुए 15 निष्कर्षो के आधार पर कार्ययोजना तैयार की गई है। इस क्षेत्र में जहरीले कचरे से मुक्त करने की कार्य योजना कारगर हो सकती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *