बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी (एसपी) अध्यक्ष अखिलेश यादव शनिवार को लखनऊ में साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस करने जा रहे हैं। इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों आगामी लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन की घोषणा कर सकते हैं। साथ ही इस दौरान सीटों के बंटवारे को लेकर ऐलान भी संभव है। ऐसी अटकलें हैं कि दोनों दल गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं करेंगे और यूपी में 37-37 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। गांधी परिवार के परंपरागत गढ़ अमेठी और रायबरेली में गठबंधन उम्मीदवार नहीं उतारेगा। प्रेस कॉन्फ्रेंस दोपहर 12 बजे होगी। यूपी की राजनीति और खासकर एसपी-बीएसपी के लिए शनिवार का दिन बेहद अहम होगा।
ऐसा पहली बार होगा जब यूपी की राजनीति के दो दिग्गज मायावती और अखिलेश यादव साथ-साथ मीडिया से रूबरू होंगे। प्रेस कॉन्फ्रेंस लखनऊ के होटेल ताज में होगी जिसके लिए मीडिया को आमंत्रित किया गया है। यह आमंत्रण एसपी के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी और बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा की ओर से भेजा गया है। इससे पहले राम मंदिर आंदोलन के दौर में 1993 मेंं एसपी और बीएसपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और बीजेपी को शिकस्त देते हुए राज्य में गठबंधन सरकार बनाई थी। बता दें कि गुरुवार को बीएसपी चीफ मायावती तीन महीने बाद दिल्ली से लखनऊ पहुंची थीं।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस को शामिल नहीं किया गया है। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि कांग्रेस दोनों के गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी। पहले ऐसा कहा जा रहा था कि मायावती अपने जन्मदिन (15 जनवरी) पर गठबंधन का ऐलान कर सकती हैं लेकिन साझा पीसी की तारीख तय होने के साथ ही यह ऐलान अब पहले होना तय माना जा रहा है।
यूपी में 80 लोकसभा सीटें हैं। माना जा रहा है कि दोनों पार्टियां 37-37 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ सकती हैं। वहीं कांग्रेस के गठबंधन में शामिल होने की स्थिति में उन्हें सिर्फ उनकी परंपरागत दो सीटें- अमेठी और रायबरेली दी जाएंगी। आरएलडी के भी इस गठबंधन में शामिल होने की संभावना है, जिसे 2 से 3 सीट दी जा सकती है।
यह भी कहा जा रहा है कि अगर अखिलेश और माया गठबंधन करते हैं तो 25 साल पहले का करिश्मा फिर से दोहराया जा सकता है, जब एसपी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने कांशीराम के साथ बीजेपी के रोकने के लिए हाथ मिलाकर यूपी में सरकार बनाई थी। मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव और कांशीराम की उत्तराधिकारी मायावती का यह कदम एक बार फिर से बीजेपी को ही रोकने के लिए है, जिसने साल 2014 के लोकसभा चुनावों और 2017 के विधानसभा चुनाव में विपक्ष को हाशिये पर धकेल दिया था।