मिजाजीलाल जैन

जबलपुर। मां का सपना था कि बेटी जज बने। आर्थिक तंगी से निबटने मां ने एक होटल में कुक की नौकरी शुरू की,ताकि घर की जरूरतें पूरी हो सकें और बिटिया पढ़ाई कर सके। आखिरकार बेटी ने जज बनकर मां का सपना पूरा किया। सिविल जज का रिजल्ट देखते ही बिटिया सीधे होटल पहुंची और खाना पका रही मां से कहा घर चलो, मैं जज बन गई, अब आपको होटल में काम नहीं करना पड़ेगा। दरअसल, मां ने बेटी के सामने शर्त रखी थी कि जज बनने के बाद ही वह कुक की नौकरी छोड़ेंगी।

बात हो रही है रविवार को सिविल जज की परीक्षा पास करने वाली रांझी निवासी शिवदास-जया झारिया की बेटी चेतना की। यह मुकाम हासिल करने के लिए चेतना को भी काफी संघर्ष करना पड़ा। चेतना ने 9वीं कक्षा से ही होम ट्यूशन देकर स्वयं की पढ़ाई का खर्च निकालना शुरू कर दिया था। 12वीं में एक बार फेल होने के बाद भी हौसला नहीं छोड़ा। दूसरी बार प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में बीए-एलएलबी में एडमिशन लिया।

चेतना ने बताया कि बीए-एलएलबी ऑनर्स उत्तीर्ण करने के बाद घर की आर्थिक दशा सुधारने नौकरी के लिए प्रयास किया। हाईकोर्ट में ट्रांसलेटर की सिर्फ एक पोस्ट थी, जिसे पास कर लिया। मां के जज बनने के सपने को पूरा करना था तो नौकरी करते हुए तैयारी जारी रखी। कुटुम्ब के सदस्यों, रिश्तेदारों, शिक्षकों, जान पहचान के लोगों ने पढ़ाई का खर्च उठाने में मदद की। तीसरे प्रयास में सिविल जज की परीक्षा पास कर ली।

चेतना का मानना है कि किसी भी विद्यार्थी के लिए टारगेट यानी लक्ष्य सर्वोपरि होना चाहिए। कंडीशन अपने आप सेकेंडरी हो जाती है। घर की माली हालत विद्यार्थी को कभी भी लक्ष्य से नहीं रोक सकती। इसके लिए पहले संकल्प लेना होगा, फिर उसे पूरा करने के लिए भरपूर मेहनत।

वर्षों गरीबी झेलने वाले माता-पिता के खुशी के आंसू छलक उठे। जब चेतना के बारे में उनसे पूछा गया तो बोले, यह बेटी नहीं बेटा है। चार बच्चों में सबसे बड़ी चेतना ने परिवार के सुख-दुख में सबका मनोबल बढ़ाया। बचपन से ही घर की स्थिति को सुधारने में सहयोग करती रही।

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