भोपाल !  इस साल होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में 5 महीने शेष हैं, लेकिन प्रमुख राजनैतिक दलों-भाजपा-कांग्रेस के नेताओं के बीच बयानबाजी से राजनैतिक माहौल गरमा गया है। दोनों दलों के नेता ऐसे बयान दे रहे हैं जिससे लगता है कि सीमाएं लांघ रहे हैं।
राय में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी जहां जीत की हैट्रिक बनाने को लालायित हैं, वहीं कांग्रेस हर हाल में भाजपा को शिकस्त देकर सत्ता हासिल करना चाहती है। दोनों दल अपनी-अपनी रणनीति व मंशा को हर हाल में पूरा करना चाहते हैं, इसके लिए चाहे उन्हें किसी भी हद तक ही क्यों न जाना पड़े। एक ओर सरकार अपनी खूबियां गिना रही है तो दूसरी ओर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस सरकार की खामियां गिनाने में पीछे नहीं है। ऐसा करना दोनों का राजनीतिक धर्म भी है। इन्हीं कोशिशों के बीच दोनों ऐसा कुछ बोले जा रहे हैं, जो उनकी सोच व समझ को भी जाहिर कर जाता है। बात सत्ता से दूर कांग्रेस की करें तो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने सीधे तौर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने पहले मुख्यमंत्री की एक सौगंध का हवाला देकर उन पर जीवन भर अविवाहित रहने का संकल्प पूरा न करने का आरोप लगाते हुए हमला बोला। फिर मुख्मयंत्री की पत्नी को नोट गिनने वाली मशीन तक कह डाला।
नेता प्रतिपक्ष के आरोपों की फेहरिस्त यहीं रुकती है। उन्होंने शिवराज के परिजनों की 10 वर्ष पूर्व और आज की संपत्ति को सार्वजनिक किए जाने की मांग करते हुए मुख्यमंत्री को खत लिख डाला। फिर शिवराज के भाई की निर्माण कंपनी पर भी कांग्रेस की ओर से सवाल किए गए। कांग्रेस के शिवराज पर होते हमलों ने भाजपा को बेचैन कर दिया है। जवाब देने सामने आए पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर। उन्होंने खुलकर नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह पर उनके पिता (अर्जुन सिंह) और दादा का हवाला देते हुए प्रहार किया। जाहिर है, वे दोनों इस दुनिया में नहीं हैं। ऐसे में तोमर ने कहा, भ्रष्टाचार के आरोप में नेता प्रतिपक्ष के दादा को जेल तक जाना पड़ा था। नेता प्रतिपक्ष के पास टयूबवेल की राशि चुकाने तक के लाले पड़े थे, फिर उनके पास अकूत दौलत कहां से आई?
राजनैतिक प्रेक्षकों का मानना है कि चुनाव करीब है और दोनों ही दल के नेता सुर्खियों में बने रहकर जनता का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करना चाहते हैं। लिहाजा, वे मर्यादाओं को ताक पर रखकर बयानबाजी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले के नेता मर्यादा में रहकर अपने विरोधी पर हमला कर सुर्खियां बनते थे मगर आज ऐसा नहीं है, क्योंकि नेताओं के पास शायद शब्द कम पड़ गए हैं। कहीं न कहीं यह संस्कारहीनता को भी दर्शाती है। बहरहाल, राजनीतिक दलों के बीच शुरू हुई जुबानी जंग बहुत आगे तक जाने की संभावना है, क्योंकि चुनाव करीब है। बस देखना यही है कि बयानबाजी की इस होड़ में कौन मर्यादा बचा पाता है।

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