भोपाल। इक्कीसवीं सदी के मध्यप्रदेश में अब तक तीन चुनाव हुए। तीनों में ही कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। 2003 के चुनाव में तो सड़क, पानी, बिजली और दलित एजेंडा जैसे मुद्दों पर जनता ने कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंका था। 2008 के चुनाव में कांग्रेस गुटबाजी के चलते हारी। फिर 2013 में हुए चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार की एंटी इंकम्बेंसी और देश में मोदी लहर के चलते प्रदेश में भी कांग्रेस को प्रदेश की सत्ता से बाहर रहना पड़ा, पर जल्द होने वाले 2018 के विधानसभा चुनाव की तस्वीर पिछले तीन चुनाव से अलग रहने की उम्मीद है। इस बार न तो कोई लहर है न ही बिजली, सड़क, पानी जैसे मुद्दे। आरक्षण जैसे विषय पर सामान्य बनाम एससी-एसटी वर्ग की नाराजी क्या रुख अपनाती है, यही मुद्दा तय करेगा कि प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी।
15 साल में बदल गए मुद्दे
2003 के चुनाव में जिन मुद्दों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था, सरकार बदलने वाले वे सारे मुद्दे खत्म हो गए हैं। उन दिनों की तुलना में सड़कें बेहतर बन गई हैं। बिजली 24 घंटे मिल रही है। किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिल रहा है।
कांग्रेस गुटबाजी में हारी थी 2008 का चुनाव
भाजपा के लिए 2008 का चुनाव बेहद चुनौतीपूर्ण था। शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता दांव पर थी, लेकिन उमा भारती की भारतीय जनशक्ति पार्टी भी मैदान में थी। कांग्रेस की कमान उन दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी के हाथों में थी।
चारों ओर एक ही चर्चा थी कि इस बार जनता फिर बदलाव करेगी पर चुनाव परिणाम आए तो कांग्रेस का आंकड़ा 38 से बढ़कर 71 विधायकों तक पहुंच गया था। इस चुनाव में कांग्रेस की हार का कारण सिर्फ गुटबाजी को माना गया। इसकी वजह ये थी कि कांग्रेस के बाकी दिग्गज नेताओं को लगा कि सरकार बनी तो पचौरी मुख्यमंत्री के दावेदार बन जाएंगे। बस इसी बात के चलते सारे गुटों ने कांग्रेस को पराजित करवा दिया।
2013 में यूपीए सरकार का खामियाजा और मोदी लहर
पिछले चुनाव में कांग्रेस को अपनी ही यूपीए गठबंधन की केंद्र सरकार की एंटी इंकम्बेंसी का प्रदेश में सामना करना पड़ा। इसका परिणाम ये हुआ कि कांग्रेस के आधा दर्जन प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी, जिसके चलते भाजपा को आशा से अधिक सीट मिली।
2018 में आरक्षण और एससी-एसटी एक्ट का मुद्दा
कांग्रेस सरकार के 2003 के दलित एजेंडे के जवाब में शिवराज सरकार ने संबल योजना लांच की है, जिसमें सभी वर्ग के लोगों को 200 रुपए महीने में बिजली मिल रही है। सामान्य या असामान्य मौत पर तत्काल पांच हजार की अंत्येष्टि सहायता दी जा रही है।
कुल मिलाकर योजना ग्रामीण इलाकों में अच्छी लोकप्रिय हो रही है पर पदोन्नति में आरक्षण और एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट का मुद्दा गरमाया हुआ है। प्रदेश में चारों तरफ इन मुद्दों पर असंतोष है। एससी-एसटी और सामान्य-ओबीसी, दोनों ही वर्ग नाराज हैं। उज्जैन में करणी सेना की विशाल रैली ने भाजपा-कांग्रेस दोनों के पसीने छुड़वा दिए हैं। माना जा रहा है कि यही मुद्दा चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करेगा।
वर्ष भाजपा कांग्रेस अन्य
2003 173 38 19
2008 143 71 16
2013 165 58 07
विकास एवं सुशासन का मुद्दा रहेगा
भारतीय जनता पार्टी सिर्फ और सिर्फ विकास एवं सुशासन के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी। इस चुनाव को राहुल गांधी धर्म और राजनीति के आधार पर लड़वाना चाहते हैं, जो हम होने नहीं देंगे।
-डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे, प्रदेश प्रभारी, भाजपा मप्र