भोपाल !  मध्य प्रदेश सरकार बच्चों को बेहतर शिक्षा सुलभ कराने के चाहे जितने दावे करे मगर हकीकत इससे दूर है। राय में 55 प्रतिशत विद्यालय ऐसे हैं, जहां पुस्तकालय तक नहीं है, वहीं 19,297 विद्यालय इकलौते शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं।
शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) को लागू हुए तीन वर्ष का वक्त गुजर चुका है मगर तय मापदंडों पर राय में यादा अमल नहीं हो पाया है। तय मापदंडों के मुताबिक, प्राथमिक विद्यालय में दो शिक्षक और माध्यमिक विद्यालय में तीन शिक्षक होना चाहिए, मगर राय के 19,297 विद्यालय ऐसे हैं जो एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं।
जिला शिक्षा सूचना तंत्र (डीआईएसई) के आंकड़े बताते हैं कि एक शिक्षक वाले विद्यालयों की संख्या सबसे यादा रीवा जिले में है। इतना ही नहीं, राय में 4,071 विद्यालय तो एक कमरे में चल रहे हैं।
इसके अलावा 49 प्रतिशत प्राथमिक व 47 प्रतिशत माध्यमिक विद्यालय ऐसे हैं जो शिक्षक-छात्र के अनुपात को भी पूरा नहीं करते हैं। तय मापदंड के मुताबिक प्राथमिक विद्यालय में 30 छात्र पर एक शिक्षक और प्राथमिक कक्षा से ऊपर के विद्यालय में 35 विद्यार्थी पर एक शिक्षक होना चाहिए मगर राय में ऐसा नहीं है।  डीआईएसई के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि अध्यापन कराने वाले शिक्षकों के साथ प्रधानाचार्यो की संख्या भी पूरी नहीं है। राय के 70 फीसदी प्राथमिक व 55 फीसदी प्राथमिक से उच्च विद्यालयों में प्रधानाध्यापक नहीं है।
बच्चों के पढ़ाने के लिए जितने आवश्यक शिक्षक हैं, पुस्तकों की उपलब्धता उससे कमतर नहीं है। राय में शिक्षकों की कमी तो है ही, साथ में 55 फीसदी विद्यालयों में पुस्तकालय भी नहीं है, सिर्फ 45 प्रतिशत विद्यालयों में ही पुस्तकालय है। इन हालात में शिक्षा के स्तर का अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है।
बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनिसेफ की मध्य प्रदेश प्रमुख तान्या गोल्डनार का कहना है कि आरटीई का अमल में आना देश के बच्चों के एक ऐतिहासिक कदम था, क्योंकि यह अधिनियम बच्चों की स्थिति को ध्यान में रखकर बनाया गया था।
मध्य प्रदेश में बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलाने की दिशा में प्रगति की है, मगर चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं। अधोसंरचना व शिक्षकों के प्रशिक्षण के तौर पर अभी और कम किया जाना बाकी है।

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