सोनागिर। मन की शांति जीवन की सबसे बड़ी दौलत है। वह समृद्धि व्यर्थ है जिसमें शांति का अमृतपान न हो। मन की शांति का मूल्य क्या है यह किसी समृद्ध व्यक्ति से जाकर पूछो जो समृद्धि का तो सिकंदर है मगर मन की शांति का भिखारी है। दिन की शुरुआत में लगता है जिंदगी में पैसा जरूरी है पर रात सोते समय लगता है जिंदगी में मन की शांति जरूरी है। यह विचार क्रांतिवीर मुनि श्री प्रतीकसागर जी महाराज ने सोनागिर स्थित आचार्य पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही!

मुनि श्री ने कहा कि अपने चेहरे पर हमेशा मुस्कान रखें, मुस्कान चेहरे की सुंदरता बढ़ाती है और गुस्सा उसे मिट्टी में मिला देता है। गुस्से को जीवन से माइनस कीजिए और मुस्कान को प्लस कीजिए फिर देखें जीवन में सब कुछ प्लस प्लस ही होगा। मुस्कुराता हुआ व्यक्ति पाप और गुनाहों के दलदल से मुक्त होता है। मगर क्रोध में व्यक्ति हिंसा, वैमनस्यता और कुंठा के अंधेरे में अपने व्यक्तित्व को खो देता है। फोटो खींच बातें समय 10 सेकंड की मुस्कान फोटो को सुंदर बना देती है तो जीवन भर की मुस्कान जिंदगी को स्वर्ग नहीं बना सकती क्या?

मुनि श्री ने कहा कि अशांत मन सूखे तालाब की तरह है। जिस में से पानी तो सूख जाता है मगर मिट्टी की दरारे रह जाती है। अपने मन को प्रसन्न रखे उसमें प्रेम का पानी डालते रहिए जिससे अंतर्मन का खेत हरा-भरा बना रहे । सफलता चाहिए तो जो पसंद है उसे हासिल करिए। शांति चाहिए तो जो हासिल है उसे पसंद करना शुरू कर दीजिए। जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति कीजिए मगर आकांक्षाओं के मायाजाल में मत उलझइऐ अति तृष्णा इंसान को अशांति का अनुयायी बना देती है। शरीर की निरोगीता हमारे मन की प्रवृत्ति पर निर्भर करती है। बुरा मान= बुरे विचार= बुरा शरीर= बीमार जीवन अच्छा मन =अच्छे विचार= अच्छा शरीर निरोगी जीवन। यह जीवन जीने की पगडंडी है । जैसा हम मन को बना कर रखते हैं वैसे ही कार्यों के अनुभव हमें होने लगते हैं इसलिए जीवन को अगर सूखी बनाना है तो बुरे विचारों से और बुरे मन से हमेशा दूरी बनाकर रखें।

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