भोपाल। भोपाल। भारत निर्वाचन आयोग ने मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए चुनाव आयोग द्वारा घोषणा नहीं की गई। जबकि इससे पहले चुनाव आयोग ने कहा था कि मध्य प्रदेश के उप चुनाव बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही कराए जाएंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा का कहना है कि मध्य प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एवं मध्यप्रदेश शासन की ओर से उप चुनाव टालने के लिए प्रस्ताव आया था। इसलिए उप चुनाव का कार्यक्रम घोषित नहीं किया गया है। मंगलवार दिनांक 29 सितंबर 2020 को आयोजित होने वाली बैठक में इस विषय पर बातचीत की जाएगी और फैसला लिया जाएगा।
मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बताया कि कोविड के चलते 70 से ज्यादा देशों ने अपने देश के चुनाव टाल दिए हैं। कोरोना काल में लोगों के हेल्थ और सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाएगा। चुनाव आयोग ने इसके लिए काफी तैयारी की है। चुनाव कार्यक्रम को भी इसी को ध्यान में रखकर बनाया गया है। राज्यसभा चुनाव और विधान परिषद चुनावों में हमने ऐसा किया है। चुनाव नागरिकों का लोकतांत्रिक अधिकार है। इसलिए चुनाव कराने जरूरी है।
मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर विधानसभा का उपचुनाव होना है परंतु मुख्य मुकाबला ग्वालियर-चंबल संभाग की 16 सीटों पर होगा। सभी 16 विधानसभा क्षेत्रों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रभाव माना जाता है जिन्होंने पिछले दिनों कांग्रेस से इस्तीफा देकर कमलनाथ सरकार गिराई और भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर शिवराज सिंह सरकार बनवाई।
मध्यप्रदेश में विधानसभा उपचुनाव 2018 में हुए थे। 15 महीने कांग्रेस की कमलनाथ सरकार चली और पिछले 6 महीने से शिवराज सिंह सरकार काम कर रही है। उपचुनाव में 28 जीत हार से मध्य प्रदेश की जनता का कुछ खास भला नहीं होगा क्योंकि दोनों ही पार्टियां 2018 के घोषणा पत्र को पूरा नहीं करेंगी।
लेकिन कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए यह उनके राजनीतिक भविष्य का चुनाव है। यदि ग्वालियर-चंबल की सीटों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया हार गए तो उनके पास से ग्वालियर-चंबल का नेता होने का तमगा छिन जाएगा। और यदि ग्वालियर-चंबल के बाहर 12 विधानसभा सीटों पर कमलनाथ हार गए, तो जय-जय कमलनाथ की जगह, हाय-हाय कमलनाथ सुनाई देगा।