भोपाल। विधानसभा और लोकसभा चुनाव की आहट के साथ सांसद, पूर्व सांसद और विधायकों की जान अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों में फंसी हुई है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्रदेश में बने फास्ट ट्रैक कोर्ट इनके लिए संजीवनी साबित हो रहे हैं।

यहां अब तक आए 41 मामलों में आठ नेताओं को राहत मिल चुकी है, जबकि कई नेता अपने मामले अभी इस कोर्ट तक लाने की कवायद में जुटे हैं। चुनाव का समय नजदीक आने और फास्ट ट्रैक कोर्ट को मामले स्थानांतरित नहीं हो पाने से संबंधित नेताओं की धड़कनें बढ़ती जा रही हैं।

जानकारी के मुताबिक 2013 में विधानसभा चुनाव और उसके बाद हुए उपचुनाव जीतकर आए 69 विधायकों पर (तब की स्थिति में) एक से लेकर नौ आपराधिक मामले दर्ज थे।

वहीं, 2014 में लोकसभा चुनाव में जीतने वाले सात सांसदों के खिलाफ भी कोई न कोई आपराधिक प्रकरण था। इन मामलों में सजा की तलवार इन नेताओं के सिर पर लटकी रहती थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ऐसे नेताओं के मामलों को निपटाने के लिए भोपाल जिला अदालत में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाई गई।

विशेष न्यायाधीश सुरेश सिंह की इस अदालत में अब तक 41 प्रकरण आए हैं। 13 मामलों में तो फैसला हो गया है, जिनमें आठ नेता बरी हो गए। हालांकि निराकृत किए गए मामलों में कुछ अन्य आरोपियों को सजा भी हुई है। तीन मामले बिना कोर्ट की सहमति के भेज दिए जाने से यहां से लौटा दिए गए।

127 आपराधिक मामले थे एमएलए पर

चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के रिकॉर्ड के मुताबिक विधानसभा चुनाव 2013 व उसके बाद हुए उपचुनावों के दौरान प्रत्याशियों द्वारा दिए गए शपथ पत्र के आधार पर 69 विधायकों के खिलाफ 127 आपराधिक मामले दर्ज थे।

इनमें से सबसे ज्यादा नौ मामले भाजपा विधायक दिलीप शेखावत के खिलाफ थे, जिन्होंने बताया कि सभी मामले फास्ट ट्रैक कोर्ट बनने के पहले ही समाप्त हो गए। एडीआर के रिकॉर्ड के अनुसार लोकसभा चुनाव 2014 में जीते प्रत्याशियों के खिलाफ शपथ पत्रों में 10 आपराधिक मामले सामने आए थे।

इन्हें मिली कोर्ट से राहत

भाजपा विधायक गोपाल परमार के चार और कांग्रेस विधायक तरुण भनोत के तीन मामले निराकृत हुए हैं। वहीं मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे, नीलांशु चतुर्वेदी, निशंक जैन, गोपाल सिंह चौहान, रमेश पटेल व यादवेंद्र सिंह के मामले में भी फैसले हो गए हैं।

राजनीतिक भविष्य की चिंता थी

फास्ट ट्रैक कोर्ट से मामले का निराकरण होने के पहले तक राजनीतिक भविष्य की चिंता सताती रहती थी। सजा या जुर्माना होने की स्थिति में राजनीति समाप्त हो जाती।

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