भोपाल. दमोह विधानसभा की सीट भाजपा का मजबूत गढ़ मानी जाती रही है. 2018 के आम चुनाव में कांग्रेस इस गढ़ में सेंध लगाने में सफल रही थी. उप चुनाव में अपनी सीट को बचाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री और मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ ने जो रणनीति अपनाई, वह सफल रही. उप चुनाव में कमलनाथ की रणनीति भाजपा बनाम वोटर की थी. यह रणनीति 28 सीटों के विधानसभा उप चुनाव में पूरी तरह सफल नहीं रही थी, लेकिन दमोह में पूरी तरह से कारगर रही. दमोह सीट पर उप चुनाव कांग्रेस विधायक रहे राहुल लोधी के इस्तीफे के कारण हुए हैं, उप चुनाव में राहुल लोधी भाजपा उम्मीदवार थे.
दमोह की इस सीट पर पिछले चार दशक से जयंत मलैया चुनाव लड़ते रहे हैं. वर्ष 2018 में हुए विधानसभा के आम चुनाव में मलैया जब राहुल लोधी से चुनाव हारे तब वे राज्य के वित्त मंत्री थे. पार्टी के ताकतवर नेता माने जाते रहे. दमोह में कभी भी उनकी जीत इकतरफा नहीं रही थी. हमेशा वे कांगे्रस उम्मीदवार के कड़े मुकाबले में फंसे. जबकि चुनाव में उन्हें कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं का साथ मिलता रहता था. पिछले आम चुनाव में वे आठ सौ से भी कम वोटों से चुनाव हारे थे. राहुल लोधी के भाजपा में शामिल होने का विरोध मलैया की ओर से किया गया था. मलैया इस सीट पर चुनाव के लिए अपने पुत्र सिद्धार्थ मलैया के तैयार कर रहे थे. राहुल लोधी के पार्टी में आने से एक और प्रतिद्वंदी और बढ़ा. मलैया परिवार चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं ले रहा, इस तरह की खबरों ने भाजपा नेतृत्व और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चिंता में डाल दिया था. नुकसान को रोकने के लिए पार्टी संगठन ने अपनी पूरी ताकत दमोह में लगा दी थी. सारे कद्दावर नेता दमोह में सक्रिय दिखाई दे रहे थे. इतने नेता 28 सीटों के विधानसभा उप चुनाव में भी सक्रिय दिखाई नहीं दिए थे.0
केन्द्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री प्रहलाद पटेल के प्रयासों से ही राहुल लोधी ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी. राहुल लोधी ने अक्टूबर में उस समय विधायकी छोड़ी थी, जब 28 सीटों पर उप चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी. राहुल लोधी को यह अंदेशा नहीं था कि भाजपा में जाने के बाद वे चुनाव नहीं जीत पाएंगे. मध्यप्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जेपी धनोपिया कहते हैं कि दमोह उप चुनाव के नतीजों से साफ हो गया है कि राहुल लोधी के पार्टी छोड़ने को वोटर ने पसंद नहीं किया. राहुल लोधी की हार रिकार्ड वोटों की हार है. भाजपा उम्मीदवार के तौर पर मलैया भी इतने वोटों से कभी नहीं हारे. लोधी की हार में मलैया फैक्टर के अलावा प्रहलाद पटेल फैक्टर भी है. दमोह, पटेल का संसदीय क्षेत्र है. इस संसदीय क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले राज्य के लोक निर्माण मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता गोपाल भार्गव से पटेल की बनती नहीं है. भार्गव नुकसान न कर सकें, इस कारण पार्टी ने उन्हें दमोह में प्रभारी भी बनाया. पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भी राहुल लोधी का प्रचार किया था. इसके बाद भी भाजपा अपने खाते में यह सीट नहीं डाल पाई.
कांग्रेस नेता कमलनाथ यह अच्छी तरह से जानते है कि संसाधनों के मामले में कांग्रेस, भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती है. यही कारण है कि पहले दिन से ही उन्होंने यह राग शुरू कर दिया कि दमोह में चुनाव कांग्रेस नहीं जनता लड़ रही है. कमलनाथ की उम्मीद के मुताबिक भाजपा का चुनाव प्रचार बेहद आक्रामक था. इसके बाद भी राहुल लोधी अपने घर के पोलिंग स्टेशन पर ही 120 वोटों से पीछे रहे. दमोह उप चुनाव पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हर दूसरे दिन वहां सभाएं कीं. कई लोक लुभावनी घोषणाएं कीं. ज्योतिरादित्य सिंधिया भी एक दिन प्रचार के लिए पहुंचे. प्रहलाद पटेल लगातार संपर्क करते रहे. इसके विपरीत कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ केवल तीन बार प्रचर के लिए गए. दिग्विजय सिंह ने भी प्रचार किया। कांग्रेस उम्मीदवार अजय टंडन, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के ही करीबी माने जाते हैं. दिग्विजय सिंह ने पार्टी नेताओं के बीच एकजुटता बनाने में काफी अहम भूमिका अदा की. अजय टंडन ने चुनाव में बड़े नेताओं की सभा कराने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. उनकी रणनीति स्थानीय नेताओं के संपर्कों का उपयोग बूथ स्तर पर किया. भाजपा की रणनीति भी बूथ जीतने की रहती है. अजय टंडन ने 2018 के आम चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर राहुल लोधी को जीत, बूथ मजबूत कर दिलाई थे. अजय टंडन पहले दो बार इस सीट पर चुनाव हार चुके हैं. टंडन कहते हैं कि दमोह का वोटर भाजपा को कई बार मौका दे चुका था. राहुल लोधी ने पंद्रह माह में ही दमोह के वोटर का भरोसा तोड़ दिया था. इसका नतीजा उप चुनाव में सामने हैं.