भिण्ड। मध्यप्रदेश के भिण्ड जिले में गणाचार्य विराग सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में श्री 1008 भगवान नमिनाथ अतिशय क्षेत्र रत्नत्रयगिरी पावई में जिनालय का जंीर्णोद्धार तथा नवीन जिनालय का ध्वजारोहण ज्ञानचन्द्र परिवार एवं शिलान्यास श्रीमती नीरा प्रदीप जैन परिवार द्वारा किया गया एवं पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य प्रमोद जैन सर्राफ (डब्बू) को प्राप्त हुआ।

गणाचार्य विराग सागर जी महाराज ने धर्मसभा को सम्बोधित करते हुये कहा कि रत्नगिरी रत्नत्रयगिरी ही है क्योंकि रत्नत्रय के उपासक नमिनाथ भगवान यहां विराजमान है एक प्राचीन जिनालय जीर्णोद्धार का फल हजार गुना नवीन जिनालयों से अधिक होता है फिर तो तीर्थक्षेत्र के जीर्णोद्धार की महिमा का फल तो कहा ही नहीं जा सकता है, वह तो अचिन्त्य है। इसलिए यह पावई अतिशय क्षेत्र आज से रत्नत्रयगिरी के नाम से प्रख्यात होगा।

आचार्य श्री ने कहा भारतीय संस्कृतियों में जिनालयों और मूर्तियों की प्राचीनता का इतिहास जैन धर्म का सबसे प्राचीनतम प्राप्त होता है जिसका निर्णय बनारस यूनिवर्सिटी में आयोजित विद्वानों, इतिहासविदों द्वारा सेमीनार में घोषित किया गया था कि जैनदर्शन में अकृत्रिम जिनालयों का, मूर्तियों का इतिहास सबसे प्राचीनतम है जिनकी अर्चना पूजा मनुष्य ही नहीं स्वर्ग के देव भी करते है। भिण्ड, बरासों, बरही, पावई अतिशय क्षेत्रों से घिरा है जिनके प्रति लोगों की अनन्य श्रद्धा भक्ति है बरासों, बरही की तरह आज रत्नत्रयगिरी के भी विकास की पावन बेला आ गई है हजारों वर्ष पुरानी प्राचीनतम प्रतिमायें है, सैंकड़ों वर्ष पूर्व का मंदिर है, जिसके अवशेष सारे गांव में जगह जगह शिलाओं के रूप में यत्र तत्र मिलते है। अवशेष यानि प्रतिमायें थी प्रतिमायें बनवाने वाले भी अनन्य भक्त तथा समाज थी इतिहास शोध का विषय है।

जीर्णोद्धार के इस महानीय कार्य में प्रत्येक समाज के एक एक घर के लोगों ने श्रद्धाभक्ति के प्रतीक स्वरूप स्वर्णादि की ईट लगाने का सौभाग्य प्राप्त किया है।

अतिशय क्षेत्र पावई में लगा भक्तों का मेला

अतिशय क्षेत्र पावई में मंदिर नवनिर्माण के अवसर पर भिण्ड, लावन, गोरमी, मौ, मसूरी, पुर, फूप, मेहगांव, ग्वालियर, दिल्ली, इटावा, ऊमरी आदि कई स्थानों से अपने निजी साधन व बसों में भरकर श्रद्धालू गणाचार्य विराग सागर महाराज के दर्शन को पहॅुचें जहां पर भक्तों का मेला लगा रहा।

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