सोनागिर। व्यक्ति के जीवन में धर्म की शुरुआत यानी धर्म का शुभारंभ ‘बुराई को भूलना सीखने से होगी। धर्म के निकट आना है या जाना है तो हर प्रकार के बुरेपन को भुलाएं यानी बुराइयां त्यागें, तभी हम धर्मात्मा बन सकते हैं। भगवान महावीर ने बोधि के अनेक सूत्र दिए हैं। यह उन्हीं के लिए लागू होता है जो उनकी कक्षा को ज्वाइन करना चाहता है। भगवान महावीर का विद्यार्थी बनना बहुत बड़ा सौभाग्य है। यह विचार क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सभागृह में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही!
मुनिश्री ने कहा कि जैन होने का मतलब भगवान महावीर का विद्यार्थी बनना है। जिंदगी की जितनी भी विपरीत परिस्थितियां व्यक्ति की परीक्षा की घड़ियां ही होती हैं। सुख अमीर-गरीब शिक्षित-अशिक्षित यानी सभी को चाहिए। साथ ही सुख हमेशा 12 माह 24 घंटे चाहिए, सुखी को सभी पसंद भी करते हैं।
मुनिश्री ने कहा कि अनेक प्रकार की सावधानियां रखने के बावजूद व्यक्ति बीमार क्यों पड़ता है, यह सब कर्म सत्ता का खेल है। नसीब, कर्म सत्ता जब आप के पक्ष में रहेंगे, तो दुनिया के धनी व्यक्ति आप ही होंगे। कर्म को न्यायाधीश, व्यक्ति को कैदी तथा जेलर को सुख और दुख देने वाला बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि व्यक्ति के लिए यह कोई भी यानी उसका परिजन या मित्र हो सकता है यानी आपकी जिंदगी से कोई भी जुड़ा है वह नसीब की वजह से सुख अथवा दुख दे सकता है। व्यक्ति को बुरा करने की इजाजत कोई और या किसी से नहीं वह स्वयं से ही मिलती है।
मुनिश्री ने कहा कि माता-पिता बच्चों के जन्म के साथ ही होते हैं, कर्म के नहीं। जीवन के सुख-दुख का हिसाब उन्हें पूरा करना पड़ेगा। मय उदाहरण के रमणीक मुनिजी ने कहा, हर व्यक्ति को कर्म तो भोगने ही पड़ेंगे। वहीं किसी ने बुरा किया और आपने भी यदि बुरा करके किया तो कर्म बंध और बनेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि सच्चा प्रतिक्रमण, सच्ची सामायिक तभी होगी जब प्रभु महावीर के नियमों को हम अपनाएंगे।