मुंबई। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का शनिवार दोपहर निधन हो गया। वे लम्बे समय से बीमार चल रहे थे। उनका निवास स्थान मातोश्री में ही उपचार हो रहा था। उनके के पुत्र उद्धव ठाकरे ने कहा कि डाक्टरों के अथक प्रयास के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। ठाकरे को पिछले कुछ दिनों से नली के जरिए लिक्विड फूड दिया जा रहा था। शुक्रवार रात से ही उनके शरीर में किसी तरह की हलचल नहीं थी। हिलना-डुलना और बोलना बंद था। डॉक्टर जलील पारकर के नेतृत्व में डॉक्टरों की एक टीम लगातार उनकी देखभाल कर रही थी।
ठाकरे के निधन का समाचार सुन समूची मुंबई में शोक की लहर छा गई। बॉलीवुड से लेेकर राजनीतिक क्षेत्र तक की बड़ी हस्तियां रात ही उनके निवास मातोश्री पहुंच गई। गत दो दिन से ठाकरे के स्वास्थ्य को लेकर असमंजस बना रहा। उनकी हालत कभी स्थिर तो कभी बिगड़ती रही और शनिवार दोपहर को उन्होंने अंतिम सांस ली।
शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे का जन्म तत्कालीन बोम्बे रेजिडेंसी के पुणे में 23 जनवरी 1926 को एक मराठी परिवार में हुआ। उनके जन्म का नाम बाल केशव ठाकरे था। ठाकरे ने अपने करियर की शुरूआत मुंबई के एक अंग्रेजी दैनिक द फ्री प्रेस जर्नल के साथ एक कार्टूनिस्ट के रूप में की। बाल ठाकरे के कार्टून टाइम्स ऑफ इंडिया में भी हर रविवार को छपा करते थे।
1960 में बाल ठाकरे ने कार्टूनिस्ट की नौकरी छोड़ दी और अपना राजनीतिक साप्ताहिक अखबार मार्मिक निकाला। अपनी मैगजीन के जरिए मराठी अस्मिता को पूरी हवा दी। इस मैगजीन के जरिए ठाकरे ने मुंबई में गुजरातियों,मारवाडियों और दक्षिण भारतीय लोगों के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ मुहिम चलाई। इसी खास मकसद के लिए 1966 में उन्होंने शिवसेना बनाई। वामपंथी पार्टियों के खिलाफ खड़ी की गई इस पार्टी ने मुंबई में मजदूर आंदोलनों को कमजोर करने में अहम भूमिका निभाई।
ठाकरे का राजनीतिक दर्शन उनके पिता से प्रभावित है। उनके पिता केशव सीताराम ठाकरे संयुक्त महाराष्ट्र मूवमेंट के जाने-पहचाने चेहरे थे। केशव सीताराम ठाकरे ने भाषायी आधार पर महाराष्ट्र राज्य के निर्माण में योगदान दिया था। बाल ठाकरे शिव सेना के मुखपत्र मराठी अखबार सामना और हिन्दी अखबार दोपहर का सामना के संस्थापक हैं।
बाल ठाकरे की पत्नी का नाम मीना ठाकरे था,जिनका 1996 में देहांत हो गया। उनके तीन बेटे स्वर्गीय बिंदुमाधव,जयदेव और उद्धव ठाकरे है। उनके बड़े बेटे बिंदुमाधव ठाकरे की एक सड़क दुर्घटना में 20 अप्रैल 1996 को मुंबई-पुणे हाइवे पर मौत हो गई थी। शुरूआती दिनों से ही शिवसेना ने डर और नफरत की राजनीति की। सत्ताधारी पार्टियां तक उनसे डरती थीं लेकिन बाद में यह डर कम हो गया।