आज भले ही ग्वालियर-चंबल सम्भाग के चंबल घाटी में बिगड़ते लिंगानुपात और यहां के कई परिवारों को बेटियों को बोझ समझने की मानसिकता में गिरत होने के रूप में जाना जा रहा हो, लेकिन बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि चंबल में जन्म लेने वाली बेटियां फिल्मी दुनिया में ऊंची उड़ान भर रही हैं। यह चंबलघाटी के समाज में आये बड़े बदलाव का प्रतीक है।

इन्हीं बेटियों में से एक हैं चंबल घाटी के ह्मदय स्थल भिण्ड जिले के गांव किशुपुरा की अंजलि भदौरिया उर्फ अन्जू, जिनके लिए किशुपुरा से बॉलीबुड तक का सफर काफी उतार चढ़ाव भरा रहा है। लड़कियों को लेकर संकुचित सोच वाले गांव से बॉलीवुड तक का सफर अन्जू के लिए आसान नहीं है। लेकिन छोटे से गांवखेड़े की इस लड़की ने यह कर दिखाया है।

अन्जू की एक बहन और एक भाई है। उन्होंने बारहवीं तक की शिक्षा किशुपुरा गांव में रहकर ही पूरी की। लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए उनको भिण्ड आना पड़ा, जहां उन्होंने चौधरी दिलीप सिंह कॉलेज में दाखिला ले लिया। अन्जू अपने परिवार पर बोझ बनना नहीं चाहती थीं। इसलिए वे अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए एक स्कूल में पढ़ाती थीं। पढ़ाई के लिए अन्जू के गांव से बाहर जाने पर महिलाओं को चारदीवारी में कैद रखने की सोच रखने वाले गांववाले फब्तियां कसने में पीछे नहीं रहते थे। मगर अन्जू ने किसी की बातों पर ध्यान नहीं दिया। अन्जू कहती हैं कि आगे जाने के लिए खुद को आधुनिक दौर के साथ खड़ा करना आवश्यक है। वह कहती हैं, “इस मुकाम तक पहुंचने के लिए मैंने काफी मेहनत की है।”  अन्जू के पिता श्री के.पी.सिंह भदौरिया एक फौजी थे और बेटा बेटी में कोई भेद नहीं करते। इसलिए चंबल के इस फौजी के मन में अपनी बेटी अन्जू को ऊंचाइयों पर पहुंचाने का जज्बा पैदा हुआ और उन्होंने उनको सहयोग करना शुरू किया। श्री भदौरिया का कहना है कि उन्हें अपनी बेटी पर फख्र है कि उसने फिल्मी दुनिया में स्थान बनाने की ठानी और कामयाब होकर दिखाया। वे कहते हैं, “अगर बेटियों को अवसर दिया जाए, तो वे भी लड़कों से कम नहीं हैं।”

अलबत्ता अन्जू ने कुछ नया करने की ठानी थी। इसलिए बी.एस.सी.करने के बाद उन्होंने एयरहोस्टेस बनने के लिए इन्दौर के एक प्रशिक्षण संस्थान में बाकायदा प्रशिक्षण प्राप्त किया। फिर जेट एयरवेज में उन्हें नौकरी भी मिल गई। इस बीच एक दिन विमान यात्रा के दौरान उनकी बी.जे.पी. कामगार टेलीविजन एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री फूलसिंह से मुलाकात हुई और उनकी सलाह पर वे तीन माह एयरहोस्टेस की नौकरी करके बॉलीवुड आ र्गइं। जहां उन्होंने मॉडलिंग के जरिए फैशन की दुनिया में पहला कदम रखा। फिर डीडी वन पर नैंसी धारावाहिक में ए.सी.पी.आंकाक्षा शर्मा के किरदार में उनकी जिंदगी ही बदल गई। यहीं से उनकी देश में नैंसी के बाद तेजी से पहचान बनती चली गई। इसके बाद उन्हें तीन धारावाहिकों में काम मिला, जिसमें से दो धारावाहिक आ चुके हैं। ए.सी.पी.आकांक्षा शर्मा का किरदार करने के बाद उनके जीवन में पंख लगे। अब वे फिल्मी रंगमंच में पूरी तरह रच बस गई हैं।

भले ही नैंसी ने आकांक्षा शर्मा को  सुर्खियां बक्शी हों, लेकिन अपने अभिनय की कसौटी खुद अन्जू रियाज करके आजमाती रही हैं। इस दौरान उन्हें महसूस होने लगा था कि टीवी की दुनिया में उनकी जिंदगी के मायने अब बदलते जा रहे हैं। वे उस मंच का हिस्सा हैं, जो समाज को यथार्थ व अन्य मुद्दों पर अपनी ओर खींच लेता है। अन्जू ने नैंसी, यह कैसी है जिंदगानी एवं महादेव टीवी धारावाहिक में काम किया है। अब वह जी टीवी पर आ रहे अफसर बिटिया धारावाहिक में शीघ्र एक जोरदार रोल में नजर आएंगी। महादेव एवं अफसर बिटिया धारावाहिक का प्रमुख अंग बनने के पीछे वो रोचक घटनाक्रम बताती हैं। उन्होंने बताया कि इन धारावाहिकों के डायरेक्टर को कुछ ऐसे कलाकारों की जरूरत थी, जो इन धारावाहिकों के चरित्र पर जमीनी स्तर पर मेल खाते हों। वो कलाकारों के आडिशन लेकर साक्षात्कार ले रहे थे। साक्षात्कार टीम ने उन्हें धारावाहिकों के किरदार के लिए उचित मानकर हरी झंडी दे दी। उन्होंने राजस्थानी फिल्म पिया परदेशिया में भी अहम रोल निभाया है तथा लाइफ ओके चौनल तथा डीडी वन पर शीघ्र आने वाले एक-एक धारावाहिक में भी वे महत्वपूर्ण रोल में नजर आएंगी।

अन्जू अब किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। उनके रग-रग में बहती लोक संस्कृति व मुल्क में फैली रीति-रिवाज की परंपराएं उन्हें यथार्थ के और अधिक नजदीक लाती हैं। फिल्मी दुनिया में शीर्ष पर पहुंचने का ख्वाब देखने वाली अन्जू आज उन गांव वालों के लिए मिसाल बन गई हैं, जो कभी ताने मारकर उनका विरोध किया करते थे। मगर आज वही गांव वाले अपने बच्चों का फिल्मी दुनिया में मुकाम बनाने में अन्जू की मदद मांगते हैं। जिला कलेक्टर श्री अखिलेश श्रीवास्तव का कहना है कि अगर लड़कियों को भी लड़कों की तरह पाला-पोषा जाए और उन्हें भी आगे बढ़ने के अवसर दिए जाएं, तो वे भी कुल का नाम रोशन कर सकती हैं। इसलिए समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए बेटियों को न सिर्फ जन्म के बाद बचाना आवश्यक है, बल्कि उनका उचित पालन-पोषण और उन्हें आगे बढ़ने के अवसर दिया जाना भी जरूरी है।”

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