लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने बड़ा दांव चलते हुए प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी और पार्टी का महासचिव बनाया है। इसका मतलब साफ है कि वे सक्रिय राजनीति में उतर गई हैं, जिसकी मांग लंबे समय से कांग्रेस के कई कार्यकर्ता करते रहे हैं। हर चुनाव के पहले यह मांग उठती ही है कि प्रियंका गांधी को चुनावी मैदान में उतरना चाहिए। कई बार ये अटकलें भी लगाई गईं कि प्रियंका गांधी अपनी मां की सीट रायबरेली से खड़ी हो सकती हैं। लेकिन हर बार ये अटकलें खारिज होती गईं, लेकिन कार्यकर्ताओं ने मांग करना नहीं छोड़ा। इस बार तो उत्तरप्रदेश के साथ-साथ मध्यप्रदेश से भी प्रियंका गांधी के लिए आवाज उठाई गई।

उन्हें भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़नेे का आग्रह किया गया। अब प्रियंका गांधी चुनाव लड़ती हैं या नहीं, इस बारे में फिलहाल कुछ कहना कठिन है, लेकिन यह तो तय है कि उनके राजनीति में उतरने से चुनावी परिदृश्य में बदलाव जरूर नजर आएगा। बीते साल ही कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने प्रियंका गांधी को गेम चेंजर बताया था और कहा था कि 2019 के चुनाव में प्रियंका एक बड़ा रोल निभाएंगी। तब कांग्रेस पार्टी ने भी स्वीकार किया था कि प्रियंका पार्टी के भीतर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। अब तक वे सोनिया और राहुल के संसदीय क्षेत्र रायबरेली और अमेठी में चुनाव प्रचार में भी उतरती रही हैं और लोगों पर इसका अच्छा प्रभाव भी पड़ा। अब उनके प्रभावक्षेत्र का दायरा और बड़ा होगा।

उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की स्थिति पहले से बहुत अच्छी नहीं है। उस पर सपा-बसपा गठबंधन के होने और उसमें कांग्रेस को शामिल न करने से कांग्रेस के लिए कठिनाइयां बढ़ गईं थीं। उसे जो करना था, अपने दम पर करके दिखाना था। इसलिए जरूरी था कि कांग्रेस कोई निर्णायक कदम उठाती। इस नजरिए से देखें तो प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तरप्रदेश और उनके साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तरप्रदेश का जिम्मा सौंपकर राहुल गांधी ने सही फैसला लिया है। दिल्ली तक पहुंचने के लिए सबसे अहम पड़ाव उत्तरप्रदेश ही है और यहां दो लोग मिलकर कांग्रेस को ठीक से संभाल पाएंगे। प्रियंका के आने से कार्यकर्ताओं में नया जोश आएगा, ऐसी उम्मीद जतलाई जा रही है। उन्हें पूर्वी यूपी का प्रभारी बनाना भी बिल्कुल सही रणनीति है, क्योंकि यहां कांग्रेस की स्थिति कमजोर है।

यूं तो फूलपुर से पंडित जवाहर लाल नेहरू का निर्वाचन क्षेत्र था। एक वक्त में इलाहाबाद, प्रतापगढ़, वाराणसी, मिर्जापुर समेत कई जिलों में कांग्रेस का प्रभाव था। लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस का जनाधार यहां सिमटता गया। वाराणसी से नरेन्द्र मोदी के चुनाव लड़नेे और जीतने के बाद कांग्रेस के लिए लड़ाई पहले से कठिन हो गईर्। विधानसभा चुनावों में तो समाजवादी पार्टी के साथ आने के बावजूद कांग्रेस खास प्रदर्शन नहीं कर पाई। पर आम चुनावों में कांग्रेस अच्छे अंकों से पास होना चाहती है। राहुल गांधी ने अब ऐलान भी कर दिया है कि कांग्रेस बैकफुट पर नहींं फ्रंटफुट पर खेलेगी। देखने वाली बात ये है कि अब भाजपा राहुल गांधी की इस चुनौती को किस तरह लेती है। प्रियंका गांधी को कांग्रेस में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलने की खबर आते ही जिस तरह की प्रतिक्रियाएं भाजपा के खेमे से आईं, उससे उसकी बौखलाहट दिखलाई दे रही है। भाजपा इसे कहीं परिवारवाद की मिसाल बता रही है, तो कहीं ये समझाने में लगी है कि राहुल गांधी असफल साबित हुए हैं, इसलिए प्रियंका गांधी को सामने लाया गया है।

हालांकि जनता ने यह देखा है कि हाल में ही संपन्न पांच राज्यों के चुनाव में भाजपा असफल रही है, जबकि तीन में कांग्रेस को सफलता मिली है। इसलिए राहुल गांधी पर असफल या पप्पू होने का ठप्पा जनता ने खुद ही नकार दिया है। और परिवारवाद की बात तो अब बेमानी ही है। वैसे भी कोई पार्टी किसे क्या पद या जिम्मा सौंपती है, यह उसका आंतरिक मसला है। इसमें भाजपा नाहक इतना परेशान हो रही है। प्रियंका गांधी में उनके प्रशंसक और बहुत से लोग इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं। उनके बात-व्यवहार, पहनावे आदि को लेकर भी साम्य बिठाते रहते हैं। और अब वे राजनीति में हैं, तो उनके काम की तुलना भी शुरु हो ही जाएगी। दादी की झलक पोती में दिखे, यह स्वाभाविक है। लेकिन अभी तो प्रियंका गांधी को राजनीति में अपनी काबिलियत साबित करना है। आम चुनावों में कांग्रेस उत्तरप्रदेश में कैसा प्रदर्शन करती है, इसका दारोमदार प्रियंका गांधी पर है। उम्मीद है वे इस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करेंगी।

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