सोनागिर। मनुष्य जीवन अत्यन्त दुर्लभ है। चैरासी लाख यौनियों में यह जीव भटकता है तब जाकर अच्छे कर्मों से मनुष्य जीवन मिलता है। लेकिन मनुष्य अपनी अज्ञानतावश इस जीवन की कद्र नहीं करता है और राग-द्वेष, मोह, माया में उलझ कर इसे खत्म कर देता है। मनुष्य जैसा सोचता है वैसी ही उसकी बुद्धि हो जाती है। जैसा उसका मन होता है वैसा ही उसका आचरण हो जाता है। वह उसकी बुद्धि के आधार पर ही पुरूषार्थ करता है। जिसके भाग्य में जितना होता है उतना ही संसार में उसे मिलता है, चाहे घर-परिवार के बारे में हो या धन के बारे में। यह विचार क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने आज बुधवार को सोनागिर स्थित आचार्य पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।

मुनिश्री ने कहा कि यदि आपके मन में दीन- दुखियों और पीडितों को देने का या उनकी सेवा करने का भाव है तो ही परमात्मा आपकी मदद करता है। अगर पुरूषार्थ से आपका भाग्य अच्छा है तो ऐसी-ऐसी वस्तुएं भी आपको आसानी से मिल जाती है जिसके लिए कई लोग सालों तक पुरूषार्थ कर रहे होते हैं और अगर आपका भाग्य प्रबल नहीं है तो आपके हाथ आई वस्तु भी छिन जाती है। पुरूषार्थ करने से ही भाग्य बनता है।

मुनिश्री ने कहा कि मनुष्य में दो तरह के आचरण होते हैं प्रभुता और पशुता का। जो अच्छे कर्म करते हैं, त्याग, तपस्या, साधना के साथ धर्मध्यान करते हैं उनका आचरण प्रभुता की श्रेणी में आता है और जो बुरे कर्म करते हैं, हमेशा ही राग द्वेष और दूसरों की वस्तुओं को छीनने में लगे रहते हैं या हर समय स्वयं के स्वार्थ के वशीभूत होकर दूसरों का बुरा ही सोचते हैं यह पशुता की श्रेणी में आता है। इसलिए हमें जो दुर्लभ मनुष्य जीवन मिला है इसको पशुता की तरह आचरण और व्यवहार करके नहीं गंवाएं बल्कि तप, त्याग और साधना का मार्ग अपना कर इसे प्रभुता की श्रेणी में लाएं ताकि आपके जीवन का कल्याण हो सके और आप मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हो सकें।

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