ग्वालियर। मध्यप्रदेश के ग्वालियर में राष्ट्रसंत विहर्ष सागर महाराज ने कहा कि संतो का काम मनुष्य को धर्म का मार्ग दिखाना है। जीवन में धन तो हर कोई कमा सकता है, लेकिन भक्ति करने का सौभाग्य हर किसी के नसीब में नहीं होता है। प्रभू भक्ति का धन जो कमा लेता है उसका कल्याण होता है।

राष्ट्रसंत मुनिश्री ने कहा कि संसार में कर्म फल से कोई बच नहीं सकता है। जैसे कर्म करोगे वैसे ही फल मिलेगे। पीडित जीव की सेवा से बढकर कोई धर्म नही है। सेवा और पूजा समझकर किए गए कार्य खुद के लिए तो प्रसन्नता दायक होते ही है इससें भगवान भी खुश होते है। कर्म ऐसे करें कि हमें पछताना न पडे। मुनिश्री ने कहा कि जिसका स्वभाव सरल हो, मन निर्मल हो, और जो मिल जाए उसी में संतोष हो ऐसे व्यक्ति दुनिया में विरलें ही होते है। भौतिकता की अंधी दौड़ में मनुष्य पाप कर्म करने से जरा भी हिचकता नहीं है। आज युवतियों का धन फैशन और युवकों का धन व्यसन में बर्बाद हो रहा है। धन का हमेशा सदुपयोग करना चाहिये। जिससे अच्छा स्वास्थ्य और सुविधाएं प्राप्त हो सके।

जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि आज मंगलवार को सुबह मुनि विजयेश सागर महाराज ने केश लोचन शुरू किया। इसके बाद मुनिश्री ने अपने हाथों से सिर, दाढ़ी और मूंछों के बाल उखाड़ फेंके। इस केश लोचन की प्रक्रिया के बीच भक्तों ने जैन मंत्रों का जाप शुरू कर दिया। मुनि की केश लोचन प्रक्रिया करीब तीन घंटे तक चली। मुनिश्री विहर्ष सागर ने अपने हाथो से मुनिश्री विजयेश सागर महाराज के सिर और चेहरे के पूरे बालों को साफ कर दिया।

जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि जैन मुनिश्री हर तीन-चार महीने में हाथों से केश लोचन करते हैं। इस प्रक्रिया में किसी जीव को नुकसान नहीं पहुंचता है। इसके अलावा यह बहुत कम होता है, जब जैन मुनि भक्तों के सामने अपना केश लोचन करते हैं। ज्यादातर मुनि एकांत में ही इस प्रक्रिया को करते हैं। वैराग्यमयी क्रिया में केश लोचन के उपरांत मुनिश्री निर्जरा उपवास करते हुए पूरे 24 घंटे तक अन्न-जल का त्याग किया। 48 घंटे बाद मुनिश्री आहार लेगे। केशलोचन के साथ-साथ महामंत्र णमोकार गूंजता रहा।

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