ग्वालियर। मध्यप्रदेश के चंबल संभाग के भिण्ड, मुरैना में जहां लडकियों को कोख में ही या जन्म के बाद मार देने की कुप्रथा थी। लेकिन अब यहां के लोगों की मानसिकता में काफी हद जक परिवर्तन आया है। आमतौर पर बेटे के जन्म पर जश्न मनाने की बात कई बार सामने आई है। लेकिन अब भिण्ड जिले के लोगों की मानसिकता बेटी और बेटे के जन्म को लेकर बदल रही है। बेटी को बोझ न मानते हुए उसे लक्ष्मी मानकर उसके आगमन पर जश्न मनाया जाने लगा है। ऐसा ही एक मामला कल भिण्ड शहर की कुशवाह कॉलोनी का है। यहां एक परिवार में दो पीढी के बाद बेटी ने जन्म लिया तो परिवार और रिश्तेदार बैंड-बाजे के साथ भिण्ड जिला अस्पताल से उसे घर लेकर आए।
भिण्ड शहर के इटावा रोड पर स्थित कुशवाह कॉलोनी निवासी आशीष शर्मा के यहां 14 अप्रैल को बेटी ने जन्म लिया। बेटी के जन्म पर परिवार में खुशी का ठिकाना नहीं रहा। कल पूरा परिवार नन्हीं परी को लेने के लिए जिला अस्पताल बैंड-बाजों के साथ पहुंचा। नन्हीं परी के अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद परिवार के सदस्य ढोल ढमाके के साथ नाचते-गाते जश्न मनाते हुए घर लेकर आए।
नवजात बेटी के पिता आशीष शर्मा ने आज यहां बताया कि उनकी भी कोई बेटी नहीं थी। 50 साल बाद परिवार में बेटी का जन्म हुआ है। इस पर मां और बच्ची को अस्पताल से घर बैंड-बाजे के साथ लाना चाहा था। इसके लिए परिवार और समाज के लोगों से भी बात हुई और सब सहर्ष ही इसके लिए तैयार हो गए। बच्ची को घर लाने पर आतिशबाजी भी की गई। उनका कहना है कि वह बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं मानते हैं। वहीं आशीष के पड़ोसियों ने बताया कि आशीष शर्मा के परिवार ने बेटी को लेकर समाज को एक नया संदेश दिया है।
मध्यप्रदेश के चंबल संभाग का भिण्ड एक ऐसा जिला है,जहां बेटियों को बहुत से लोग जन्म ही नहीं लेने देते। यही कारण है कि वर्ष 2001 में यानी 16 साल पहले इस जिले में 1000 बालकों के मुकाबले मात्र 832 बालिकाएं थीं। इस लिंगानुपात में कुछ गांव तो 1000 पर 500 से भी कम बेटियों की संख्या वाले रहे हैं। वर्ष 2011 जनगणना का आंकडा देखें तो कुछ सुधार होकर 1000 बालकों के अनुपात में बालिकाएं 843 हो गईं। जिस प्रकार बेटी के जन्म को लेकर लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है। जिसका परिणाम वर्ष 2021 में जनगणना होगी, तब जो आंकडा आएगा, उसमें सुधार की पूरी गुंजाइश नजर आने लगी है।