इंदौर ! प्रदेश के धार जिले में बनने वाले राष्ट्रीय डायनासोर जीवाश्म अभ्यारण्य के लिए अब केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी है। इससे इलाके में अब ऐसी कोई गतिविधि संचालित नहीं हो सकेगी, जिससे किसी भी रूप में यहाँ के पर्यावरण को नुकसान हो सके। इसमें जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए नए सिरे से प्रयास किए जा रहे हैं। अब इस इलाके में किसी भी तरह की गतिविधि के लिए सरकारी अनुमति जरुरी कर दी गई है।
केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार की अधिसूचना में धार जिले के बाग़ कस्बे के पास प्रस्तावित अभ्यारण्य के लिए अब अधिसूचना राजपत्र में जारी की गई है। इसके लिए आसपास के करीब ढाई सौ मीटर क्षेत्र को पारिस्थितिकी संवेदी क्षेत्र बनाकर इसमें तमाम पर्यावरण को प्रभावित करने वाली गतिविधियों जैसे खनन, पत्थर तोडऩे की मशीन, लकड़ी काटने वाली आरा मशीन, जल स्रोतों को नुकसान पंहुचने वाले उद्योगों, व्यावसायिक निर्माण, बड़ी जल परियोजनाओं या सिंचाई परियोजनाओं सहित अन्य गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. अब इसके लिए एक निगरानी समिति बनाई गई है, जो इस पर सतत निगरानी करेगी. इसमें इंदौर संभागायुक्त को अध्यक्ष तथा धार के जिला वन अधिकारी को सचिव बनाया गया है। यहाँ 0.897 वर्गकिमी क्षेत्र में विकसित किए जा रहे इस उद्यान के लिए सीमांकन और सुरक्षा तार लगाने का काम पहले ही पूरा कर लिया गया है।
यहाँ पहाड़ी और नदियों के संरक्षण के लिए इलाके में जैविक खेती, सौर ऊर्जा और बारिश के पानी के सहेजने पर भी जोर दिया जाएगा। यहाँ तक कि बिजली और टेलिफोन के लिए भी भूमिगत केबल बिछाने की बात कही गई है। इलाके के पर्यावरण प्रेमी और डायनासोर के अवशेषों पर शोध से जुड़े स्थानीय वैज्ञानिकों की मंगल पंचायत ने इसका स्वागत करते हुए उम्मीद जताई है कि इससे उद्यान निर्माण का लंबे समय से अटका काम अब जल्दी ही शुरू हों सकेगा। यहाँ करीब साढ़े 6 करोड़ साल पुराने विलुप्त प्रजाति के डायनासौर के अंडे तथा कंकाल सहित कई महत्वपूर्ण अवशेष मिलते रहे हैं, इनसे जैव वैज्ञानिक मानव समाज और सभ्यता के इतिहास की कई शोधपरक जानकारियां सामने आ सकेंगी।