प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इजरायल की यात्रा पर निकलने के साथ ही इतिहास के ऐसे पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन गए हैं जो इस यहूदी देश की यात्रा करेगा। इजरायल को लेकर बाहरी दुनिया में कई तरह की बातें होती हैं लेकिन एक बात जो पूरी दुनिया एक सुर में मानती है वो है इस छोटे से देश की बहादुरी।
अपनी आजादी के साथ ही तमाम बाहरी संकटों से जूझते रहे इजरायल ने तेजी से तरक्की की राह पकड़ी और खुद को दुनिया में एक अलग ताकत के रूप में स्थापित किया, ऐसी ताकत जिसकी ओर बड़े से बड़े देश भी आंख उठाने से डरते हैं। भारत की तरह ही लंबे समय तक आतंकवाद से जूझते रहे इजरायल ने उसके आगे घुटने नहीं टेके बल्कि उसे जड़ से नेस्तनाबूद कर दिया।
एक दौर में इजरायल भी अपने पडोसियों से उसी तरह परेशान रहा जैसे भारत, लेकिन आज शायद ही कोई देश उसके पंगा लेने की जुर्रत कर पाता है। भारत और इजरायल लगभग एकसाथ ही आजाद हुए लेकिन आज अर्थव्यवस्था, शिक्षा, निर्यात, आतंकवाद के निवारण और वैश्विक ताकत के मामले में इजरायल कई पायदान आगे खड़ा है। ऐसे में भारत को इजरायल से कुछ जरूरी सबक लेने की जरूरत है, जिन्हें अपनाकर वह अपनी समस्याओं से पार पा सकता है।
अपने जन्म के साथ ही इजरायल को शुरू से आतंकवाद और बाहरी दुश्मनों से जूझना पड़ा है। इजरायल के जन्म के साथ ही अरब देशों के साथ उसका युद्ध शुरू हो गया, जो लंबे समय तक चला। इसके बाद फलस्तीन संगठन पीएलओ के साथ भी उसकी लड़ाई जारी रही।
एक दौर में शायद ही कोई दिन बीतता था जब इजरायल के किसी न किसी हिस्से में आतंकवादी घटना न होती हो। यहां तक की म्युनिख ओलंपिक में उसके नौ खिलाड़ियों को भी मौत के घाट उतार दिया गया। लेकिन इसके बाद इजरायल ने आतंकवाद के खिलाफ ऐसा कड़ा रुख अख्तियार किया कि धीरे धीरे उसके देश से इसका नामोनिशान मिट गया।
आतंकियों और उनका सहयोग करने वालों के खिलाफ किसी तरह की मुर्रव्वत न करने की नीति ने इजरायल से आतंकवाद को जड़ से खत्म कर दिया। आतंक के प्रति इजरायल में किसी तरह की दया नहीं दिखाई जाती, इसी का नतीजा है कि पडोसी देश सीरिया में जहां खुंखार आतंकी संगठन IS ने कहर बरपाया हुआ है वहीं वह कभी इजरायल में घुसने की जुर्रत भी नहीं कर पाता। भारत को भी आतंक के प्रति इजरायल की इस नीति से सबक लेना चाहिए।
इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद को दुनिया की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसी कहा जाता है। मोसाद की सटीकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज तक उसका कोई ऑपरेशन फेल नहीं हुआ। 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में फलस्तीन के आतंकी संगठन ने इजराल के 12 खिलाड़ियों को मौत के घाट उतार दिया था।
जिसका बदला मोसाद ने तीन दशक तक लिया और उस हमले में शामिल रहे सभी आतंकियों को बेहद खतरनाक मौत दी। उसी ऑपरेशन में शामिल रहे बेंजामिन नेतन्याहू आज इजरायल के प्रधानमंत्री भी हैं। इसके अलावा आतंकियों ने जब इजरायल के जहाज का अपहरण कर लिया तब मोसाद ने बिना किसी की जान गंवाए आतंकवादियों को मार गिराया और अपने जहाज को सकुशल रिहा करवा लिया। मोसाद की तरह ही भारत को भी अपनी सुरक्षा एजेंसियों को शक्तिशाली बनाने की जरूरत है।