नई दिल्ली। दागी नेताओं के खिलाफ पेंडिंग मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को लेकर चिंता जाहिर की है कि पुलिस जनप्रतिनिधियों को गिरफ्तार कर पेश करने से परहेज करती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ बड़ी संख्या में केस पेंडिंग हैं लेकिन इन नेताओं के दबाव में वह कानून लागू नहीं करवा पाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमना की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि हमें बताया गया है कि कई बार पुलिस कानून को लागू नहीं करवा पाती है क्योंकि जनप्रतिनिधि आरोपी होते हैं। हम समझ सकते हैं कि यह गंभीर मसला है। बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट में 2016 में बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया था कि जिन सांसदोंं और विधायकों के खिलाफ केस दर्ज है वो मामले लंबे समय से पेंडिंग हैं। ऐसे वर्तमान और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज केस में जल्दी से जल्दी मामले का निपटारा किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट सलाहकार ने अपनी रिपोर्ट पेश कर बताया था कि पूर्व और मौजूदा सांसदों और विधायकों के खिलाफ पेंडिंग आपराधिक मामलों में पिछले दो सालों में इजाफा हुआ है। शीर्ष अदालत को बताया कि इसके लिए हाई कोर्ट की तरफ से माइक्रो लेवल पर मॉनिटरिंग करने की जरूरत है ताकि केसों का निपटारा जल्दी से जल्दी सुनिश्चित किया जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान इस बात को संज्ञान में लिया कि तमाम हाई कोर्ट ने पेंंडिंग केसों के निपटारे के लिए वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए सुनवाई करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधियों के खिलाफ नए केस के डीटेल पेश करने को कहा है। साथ ही हाई कोर्ट से पूछा है कि वे बताएं कि कितनी संख्या में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधाएं हैं ताकि इन मामलों का जल्द से जल्द निपटारा हो सके। सुप्रीम कोर्ट को बताया गया था कि नई रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व व वर्तमान सांसदों और एमएलए के खिलाफ 4859 आपराधिक मामले पेंडिंग हैं और पिछले दो सालों में ये आंकड़ा बढ़ गया है। मार्च में ये संख्या 4442 की थी।

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