इस्लामाबाद। पाकिस्तान के लिए पहला और दुनिया की सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई छह वर्ष के बाद गुरुवार को अपने देश वापस लौटी। अधिकारियों की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक छह वर्ष पहले लड़कियों के लिए शिक्षा की वकालत करने वाली मलाला पर तालिबान के आतंकियों ने हमला किया था। मलाला के सिर पर गोली मारी गई थी और उनकी हालत भी काफी नाजुक थी। इस घटना के बाद से मलाला लगातार लड़कियों की शिक्षा के लिए काम कर रही हैं और पूरी दुनिया में उन्हें उनकी बहादुरी के लिए काफी सराहा भी जा रहा है। हालांकि पाकिस्तान में लोग उनके बारे में अलग-अलग राय रखते हैं।
पाक पीएम अब्बासी से मिलेंगी मलाला
20 वर्षीय मलाला, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकन अब्बासी से भी मुलाकात कर सकती हैं। वह चार दिनों के लिए पाकिस्तान में हैं और संवेदनशीलता को देखते हुए उनकी इस यात्रा से जुड़ी हर जानकारी को गुप्त रखा जा रहा है। पाक अधिकारियों की ओर से इस बात की जानकारी दी गई है। मलाला के साथ उनके माता-पिता भी पाकिस्तान आए हैं। इस्लामाबाद के बेनजीर भुट्टो इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर जब वह अपने परिवार के साथ पहुंची तो उन्हें कड़ी सुरक्षा दी गई थी।
अक्टूबर 2012 को हुआ था हमला
नौ अक्टूबर 2012 को स्वात वैली में मलाला पर तालिबानी आतंकियों ने हमला किया था। मलाला अपनी स्कूल बस में थीं और तभी आतंकी बस में सवार हुए और उन्होंने पूछा, ‘मलाला कौन है? और इसके बाद मलाला के सिर में गोली मार दी गई। इसके बाद ब्रिटेन के बर्मिंघम में उनका इलाज हुआ और यहीं पर उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की। इस घटना के बाद से मलाला दुनियाभर में लोगों के लिए मानवाधिकारों की आवाज उठाने वालों की पहचान बन गई। साल 2014 में मलाला को शांति का नोबेल पुरस्कार मिला और वह इस पुरस्कार को हासिल करने वाली सबसे कम उम्र की विजेता बन गईं।
ऑक्सफोर्ड में कर रही हैं पढ़ाई
मलाला इस समय ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई कर रही हैं और लगातार लड़कियों की शिक्षा के लिए आवाज उठा रही हैं। मलाला की उम्र सिर्फ 11 वर्ष थी जब उन्होंने अपने कैंपेन की शुरुआत की थी और साल 2009 में मलाला ने एक काल्पनिक नाम के साथ बीबीसी उर्दू के लिए ब्लॉग लिखना शुरू किया था। मलाला ने ब्लॉग में लिखा था कि कैसे स्वात घाटी में तालिबान आतंकियों ने लड़कियों की शिक्षा पर पाबंदी लगा रखी है। साल 2007 में तालिबान आतंकियों ने इस इलाके पर कब्जा कर लिया था। इस हिस्से को मलाला ‘माई स्वात’ कहती थीं और यहां पर कब्जे के बाद तालिबान ने अपने खतरनाक नियमों को लागू कर दिया था। यहां पर महिलाएं बाजार नहीं जा सकती थीं और लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी थी। साथ ही जो भी शरिया कानून को तोड़ता था उसे सार्वजनिक तौर पर कोड़े मारे जाते थे। नियमों के खिलाफ आवाज उठाने वालों की हत्या कर दी जाती थी।
ट्टिवर पर एक्टिव मलाला
जुलाई 2017 में मलाला ने ट्विटर पर अपना अकाउंट शुरू किया और अब उनके करोड़ों फालोअर्स हैं। मलाला ने अपने पहले ट्वीट में लिखा था, ‘मुझे पता है कि दुनियाभर में करोड़ों लड़कियां स्कूल से बाहर हैं और उन्हें कभी अपनी शिक्षा पूरी करने का मौका नहीं मिलेगा।’ हाल ही में दावोस में हुए वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में भी मलाला मौजूद थीं। यहां पर उन्होंने महिलाओं से अपील की कि वे पुरुषों की मदद के बिना दुनिया को बदलें। मलाला ने यहां पर कहा था कि हमें दुनिया को बदलने के लिए पुरुषों की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है और हम यह खुद करेंगे।
पाकिस्तान में मिली-जुली प्रतिक्रिया
बहुत से पाकिस्तानी नागरिकों ने पाकिस्तान आने पर मलाला का स्वागत किया है। लेकिन कुछ लोग मलाला का विरोध भी कर रहे हैं। पाकिस्तान के राजनेता सैयद अली रजा आब्दी ने ट्विटर पर लिखा, ‘मैं मलाला यूसुफजई, पाकिस्तान की बहादुर बेटी का देश में वापस आने पर स्वागत करता हूं।’ हालांकि कुछ कट्टरपंथी और रूढ़ीवादी लोग मलाला का विरोध भी कर रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि मलाला पश्चिमी संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं। पाकिस्तान के लीडिंग जर्नलिस्ट हामिद मीर ने विपक्षी राजनेताओं से अपील की कि इंटरनेशनल मीडिया की नजरें मलाला की वापसी हैं तो ऐसे में कुछ भी नकारात्मक बातें कहने से बचें क्योंकि इससे पाकिस्तान की छवि को नुकसान होगा।