ग्वालियर। तानसेन समारोह के दूसरे दिन मधुर तथा बुलंद आवाज की धनी सुश्री सोमबाला सातले कुमार ने जब ”भाव” को पूरी गहराई में समेटकर ”माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की” ख्याल का गायन किया, तब संगीत सम्राट तानसेन के समाधि प्रांगण में बैठे रसिक श्रोता भाव विभोर हो उठे। तानसेन समारोह के दूसरे दिन प्रात:कालीन सभा में सुविख्यात शास्त्रीय गायिका सुश्री सोमबाला सातले कुमार की यह प्रस्तुति चौताल में निबद्घ थी।
ध्रुपद गायन की परंपरा वर्तमान में शीर्ष नामों में शुमार सुश्री सोमबाला सातले ने राग शुद्घ सारंग में नोम तोम आलाप से अपने गायन की शुरुआत की। विभिन्न लयकारी तीनों सप्तकों से युक्त उनका गायन बड़ा प्रभावशाली था। खुली आवाज की धनी सोमबाला जी ने क्रमबद्घ आलापचारी से वातावरण को रसमय बना दिया। फिर गान मनीषी तानसेन की प्रिय ध्रुपद शैली में गायन कर संगीत की सरिता बहा दी, जिसमें रसिक श्रोता बड़ी देर तक डूबे रहे। उन्होंने अपने गायन का समापन राग मधुमास सारंग में एक बंदिश ”साहिब तुम ही करतार” की प्रस्तुति के साथ किया। उनके साथ पखावज पर संगति पृथ्वीराज ने की।
तानसेन समारोह की द्वितीय संगीत सभा की पहली कलाकार ग्वालियर शहर की निवासी एवं हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की प्रतिभावान प्रतिनिधि डॉ. रंजना टोणपे थीं। रंजना टोणपे ने घरानेदार गायिकी से ओतप्रोत अपने गायन में राग भूपाल तोडी का चयन किया, जिसमें उन्होंने एक ताल में बड़ा ख्याल और छोटा ख्याल ”भनक पड़ी कान” प्रस्तुत किया। उनके साथ तबला परअनिल मोघे तथा हारमोनियम पर जमीर अहमद ने बड़ी कुशलतापूर्वक संगत की। ध्रुपद अंग में विचित्र वीणा बजाने वाली भारत की एक मात्र महिला वादिका के रुप में प्रसिद्घ सुश्री पद्मजा विश्वरूप द्वितीय संगीत सभा की दूसरी कलाकार थीं। पद्मजा विश्वरूप ध्रुपद अंग से विचित्र वीणा वादक के रुप में विख्यात हैं। उनके साथ पखावज संगत भोपाल के युवा पखावज वादक ऋषि शंकर उपाध्याय ने की।
तानसेन समारोह की द्वितीय संगीत सभा की चौथी कलाकार मूर्धन्य संतूर वादक पं. शिवकुमार शर्मा की शिष्या सुश्री श्रुति अधिकारी थीं। उन्होंने राग चारूकेशी से अपने संतूर वादन की शुरुआत की। आलाप जोड झाला के पश्चात रूपक ताल में गत प्रस्तुत की। उनके साथ तबला संगत मिथलेश झा ने की। दूसरे दिन प्रात:कालीन संगीत सभा का समापन सुप्रतिष्ठित शास्त्रीय संगीत गायक सुश्री सुधा रघुरामन के कर्नाटक शैली में गायन के साथ हुआ। सुश्री सुधा ने अपने गायन का प्रारंभ राग नाटी से किया। आदिताल में निबद्घ रचना ”जय जय स्वामी” की प्रस्तुति भी उन्होंने दी। उनके साथ बांसुरी पर जी रघुनाथम, वायलन पर बी एल अन्नाकुट्टी, मृदंग पर नेवेजी श्रीराम कुमार ने प्रभावी संगत की।

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