ग्वालियर। डॉ. राममनोहर लोहिया भारतीय राजनीति के कबीर थे, वे सदैव वंचितों, गरीबों और समाज के अंतिम व्यक्ति को बराबरी और सम्मान दिलाने के लिये संघर्षरत रहे । उक्त आशय के विचार भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज यहां आईटीएम यूनिवर्सिटी में चतुर्थ डॉ. राममनोहर लोहिया स्मृति व्याख्यान-2018 को संबोधित करते हुये व्यक्त किये। कार्यक्रम की अध्यक्षता बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने की। इस मौके पर राज्यपाल श्रीमती आनंदी बेन पटेल, हरियाणा के राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर तथा मप्र के उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया भी मंचासीन थे। वहीं कार्यक्रम में प्रदेश की नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह भी उपस्थित थीं।
राष्ट्रपति कोविंद ने डॉ. राममनोहर लोहिया के अभूतपर्व राजनैतिक योगदान का विस्तार से उल्लेख करते हुये कहा कि उन्होंने भारतीय प्रजातंत्र को मजबूत करने की दिशा में सदन में मजबूत विपक्ष की भूमिका का सूत्रपात किया। आचार्य कृपलानी के माध्यम से प्रथम अविश्वास प्रस्ताव लाकर डॉ. लोहिया ने संसद में बहस को नई ऊचाइयां दी। भारतीय राजनीति में यह एक क्रांतिकारी पहल थी जिसके फलस्वरूप देश में कांग्रेसी राजसत्ता की एकाधिकार प्रवृत्ति पर अंकुश लगा। डॉ. लोहिया ने हमेशा अन्याय के खिलाफ लडाई लडी तथा अपनी 57 वर्ष की आयु में 18 बार जेल भी गये। राष्ट्रपति ने डॉ. राममनोहर लोहिया और ग्वालियर के प्रगाढ़ रिश्तों को रेखांकित करते हुये कहा कि उन्होंने वर्ष 1962 में ग्वालियर की महारानी के विरूद्ध सफाई कर्मी सुखो रानी को अपनी पार्टी का उम्मीदवार बनाकर चुनाव लड़वाया तब उनका मानना था कि ग्वालियर अगर महारानी के स्थान पर सुखोरानी को चुनता है तो यह भारतीय प्रजातंत्र का महत्वपूर्ण बदलाव भरा क्षण होगा। संसद से सड़क तक जनचेतना की मशाल जलाने वाले डॉ. राममनोहर लोहिया ग्वालियर के 1962 के चुनाव को फूलपुर की अपनी हार वाले चुनाव से भी अधिक महत्वपूर्ण मानते थे।
राष्ट्रपति कोविंद ने अपने उदबोधन में युवा लोहिया के साइमन कमीशन के विरोध से राजनीतिक यात्रा शुरू करने से लेकर जर्मनी में उनके अध्ययन और नमक के अर्थशास्त्र पर जर्मन भाषा में शोध प्रबंध प्रस्तुति को उनकी अदभुत प्रतिभा का परिचायक निरूपित किया । अमेरिका के मिसीसिप्पी में गोरे-काले के भेद को समाप्त करने की दिशा में और फिर 1942 में भारत में अंग्रेजों के विरूद्ध स्वतंत्रता संग्राम में जब अगली पंक्ति के अधिकतर नेता जेलों बंद थे, तब डॉ. लोहिया ने 22 महीने भूमिगत रहकर गुप्त रेडियो स्टेशन तथा व्यवस्थित प्रचार साहित्य वितरण के माध्यम से अन्दोलन संचालित किया। उन्होंने कहा कि डॉ. राममनोहर लोहिया ने आजादी पूर्व जेलों में तरह-तरह की यातनायें सही, पर अंग्रेजी सरकार के अत्याचार भी उन्हे तोड़ नहीं सके । वर्ष 1946 में पुर्तगाल से गोवा मुक्ति का भी उन्होंने अपने गोवा प्रवास के दौरान बीजारोपण किया और गिरफ्तार भी हुये।
डॉ. राम मनोहर लोहिया अपने भाषणों में धार्मिक चरित्रों को भारतीय समाज में प्रेरणा का स्रोत मानते थे। वे स्वयं भी शिव समान मतिष्क, कृष्ण सा हृदय और राम सी कर्तव्य परायणता के पक्षधर थे। राष्ट्रपति डॉ. रामनाथ कोविंद ने उनके इन्ही गुणों की सराहना करते हुये उन्हे राष्ट्रहित में पार्टी हितों से ऊपर उठकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जोनपुर चुनाव में मंच साझा करने व साथ ही रामराज्य से भी ऊपर उठकर सीता राम राज्य की वकालत करने वाला कहा। देश में जाति प्रथा को समूल नष्ट करने की दिशा में डॉ. लोहिया ने शासकीय सेवक के लिये अन्र्तजातीय विवाह की अनिवार्यता की वकालत की थी। उनका मानना था कि अन्र्तजातीय विवाहों के फलस्वरूप 50 से 100 वर्षों में भारतीय समाज में जाति प्रथा का जहर समाप्त किया जा सकेगा व भष्टचार पर भी प्रभावी रोक लगेगी।
भारतवर्ष में प्रजातंत्र को मजबूत करने और समरस समाज, समता समाज और महात्मा गांधी के सर्वोदयी विचारों का अनुकरण करते हुये डॉ.राममनोहर लोहिया ने दीनदयाल उपाध्याय तथा बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के दलितों, वंचितों, महिलाओं और गरीबों को आगे लाने की दिशा में काम करते रहे। डॉ. लोहिया जो स्वयं बहुत विद्वान थे और कई भाषाओं के जानकार थे अपनी बातों को सीधी सरल भाषा में आमजन तक पहूंचाते थे। शिक्षा को लेकर उनका कथन था कि राजपूत, निर्धन संतान, सबकी शिक्षा एक समान। राष्ट्रपति कोविंद ने डॉ. राममनोहर लोहिया की स्मृति व्याख्यान माला आयोजित करने और डॉ. लोहिया के विचारों को पुस्तकाकार करने पर आईटीएम के संस्थापक एवं कुलाधिपति रमाशंकर सिंह के प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने डॉ. राममनोहर लोहिया की सप्त क्रांति और वर्ष 1974 में जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन की सामंजस्यता समझाते हुये उन्हें भारतीय राजनीति में बदलाव का मार्ग प्रशस्त करने वाला निरूपित किया। उन्होंने कहा कि 1967 के बाद 9 राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का बीज डॉ. लोहिया ने ही डाला था। उन्होंने रमाशंकर सिंह के कला संस्कृति और शिक्ष के क्षेत्र में योगदान की सराहना की तथा उनसे डॉ. राममनोहर लोहिया पर फिल्म बनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार डॉ. लोहिया की स्मृति में व्याख्यान माला और प्रकाशनों के माध्यम से उनके विचार समाज में जा रहे हैं , वेसे ही फिल्म उस दिशा में नई पीढ़ी को भी मार्गदर्शन देगी।
इस अवसर पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने कहा कि आज पुरखों को याद करने का दिन है, क्योंकि आज एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि है। उन्होंने कहा कि डॉ. राममनोहर लोहिया एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय के गरीब और कमजोर वर्ग के कल्याण की भावना के अनुरूप केन्द्र और मध्यप्रदेश सरकार काम कर रही है। हर गरीब को पक्का मकान मिले इस दिशा में योजना संचालित है और मप्र में यह कानून बनाया गया है कि प्रदेश में रहने वाला कोई भी व्यक्ति बिना भूमि के मालिकाना हक के नहीं रहेगा । चैहान ने कहा कि बच्चों की उच्च शिक्षा में दिक्कत न आये इसके लिये योजना बनाई गई कि जो छात्र 70 प्रतिशत से अधिक अंक लायेगा उसे भारत या विदेश के किसी भी कालेज में दाखिला लेने पर पूरी फीस मध्यप्रदेश सरकार भरेगी। पैसे की कमी पढ़ाई में आढे नहीं आने देंगे।
कार्यक्रम के प्रारंभ में आईटीएम विश्वविद्यालय के कुलाधिपति रमाशंकर सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया तथा उन्हें पुष्प गुच्छ एवं स्मृति चिन्ह भेंट किए। इस अवसर ग्वालियर संभाग के आयुक्त बीएम शर्मा, आईजी अंशुमन यादव, डीआईजी मनोहर वर्मा, कलेक्टर राहुल जैन, पुलिस अधीक्षक डॉ. आशीष, नगर के बुद्धिजीवियों गणमान्य नागरिकों सहित आईटीएम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर्स और विद्यार्थी उपस्थित थे।