एनपीए की समस्या से जूझ से बैंकिंग सेक्टर को उबारने के लिए केन्द्र सरकार 2017 में एफआरडीआई बिल लेकर आई थी. इस बिल को केन्द्र सरकार ने वापस ले लिया है. इस फैसले से देश में करोड़ों बैंक खाताधारकों को राहत पहुंची है. यह एफआरडीआई बिल देश के सरकारी और प्राइवेट बैंकों को संकट से ऊबारने के लिए बैंकों को ऐसी शक्तियां देता जिसका सीधा असर करोड़ों बैंक खाताधारकों पर पड़ता.

क्या है एफआरडीआई बिल

केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित एफआरडीआई बिल से सरकार सभी वित्तीय संस्थाओं जैसे बैंक, इंश्योरेंस कंपनी और अन्य वित्तीय संगठनों का इंसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड के तहत उचित निराकरण करना चाह रही थी. इस बिल को कानून बनाकर केन्द्र सरकार बीमार पड़ी वित्तीय कंपनियों को संकट से उबारने की कोशिश करती.

इस बिल की जरूरत 2008 के वित्तीय संकट के बाद महसूस की गई जब कई हाई-प्रोफाइल बैंकरप्सी देखने को मिली थी. इसके बाद से केन्द्र सरकार ने जनधन योजना और नोटबंदी जैसे फैसलों से लगातार कोशिश की है कि ज्यादा से ज्यादा लोग बैंकिंग व्यवस्था के दायरे में रहें. इसके चलते यह बेहद जरूरी हो जाता है कि बैंकिंग व्यवस्था में शामिल हो चुके लोगों को बैंक या वित्तीय संस्था के डूबने की स्थिति में अपने पैसों की सुरक्षा की गारंटी रहे.

इसे पढ़ें: केन्द्र सरकार के मुताबिक FRDI कानून से और सुरक्षित हो जाएगा बैंक में जमा आपका पैसा

एफआरडीआई बिल का प्रमुख प्रावधान

इस बिल में एक रेजोल्यूशन कॉरपोरेशन बनाने की बात थी. इस कॉरपोरेशन को डिपॉजिट इंश्योरेंस और क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन की जगह खड़ा किया जाता. यह रेजोल्यूशन कॉरपोरेशन वित्तीय संस्थाओं के स्वास्थ्य की निगरानी करता और उनके डूबने की स्थिति में उसे बचाने का प्रयास करता. वहीं जब वित्तीय संस्था का डूबना तय रहेगा तो ऐसी स्थिति में उनकी वित्तीय देनदारी का समाधान इस कॉरपोरेशन को करना था. गौरतलब है कि रेजोल्यूशन कॉरपोरेशन का एक अहम काम ग्राहकों को डिपॉजिट इंश्योरेंस देने का भी है हालांकि अभी इस इंश्योरेंस की सीमा निर्धारित नहीं की गई है.

क्यों है एफआरडीआई बिल से डर

एफआरडीआई बिल के जरिए रेजोल्यूशन कॉरपोरेशन को फेल होने वाली संस्था को उबारने के लिए (बेल इन) कदम उठाने का भी अधिकार है. जहां बेल आउट के जरिए सरकार जनता के पैसे को सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था में निवेश करती है जिससे उसे उबारा जा सके वहीं बेल इन के जरिए बैंक ग्राहकों के पैसे से संकट में पड़े बैंक को उबारने का काम किया जाता है.

इसे पढ़ें: NPA बना बोझ, बैंकों की सेहत सुधारने में सरकार के छूटे पसीने

टल गया बैंक बैलेंस पर छाया संकट

एफआरडीआई बिल के इसी प्रावधान के चलते आम लोगों में डर था कि यदि उनका बैंक विफल होता है तो उन्हें अपनी गाढ़ी कमाई से हाथ धोना पड़ सकता है. गौरतलब है कि मौजूदा प्रावधान के मुताबिक किसी बैंक के डूबने की स्थिति में ग्राहक को उसके खाते में जमा कुल रकम में महज 1 लाख रुपये की गारंटी रहती है और बाकी पैसा लौटाने के लिए बैंक बाध्य नहीं रहते. प्रस्तावित एफआरडीआई बिल में फिलहाल सरकार ने गांरटी की इस रकम पर अभी कोई फैसला नहीं लिया है.

केन्द्र सरकार ने प्रस्तावित फाइनेनशियल रेजोल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल 2017(एफआरडीआई बिल) पर सफाई दी थी कि संसद में पेश किए गए बिल में बैंक ग्राहकों के लिए मौजूदा सुरक्षा प्रावधानों में किसी तरह के ऐसे बदलाव की पेशकश नहीं की है जिससे उनके हितों को नुकसान पहुंचे.

इसके अलावा केन्द्र सरकार ने दावा भी किया था कि संसद में पेश बिल में प्रस्तावों के जरिए ग्राहकों को अतिरिक्त सुरक्षा देने के साथ-साथ बैंकिंग क्षेत्र में अधिक पारदर्शिता लाने की कोशिश भी की जाएंगी.

गौरतलब है कि एफआरडीआई बिल को संसद में पेश करने के बाद केन्द्र सरकार ने सफाई दी थी कि एफआरडीआई बिल में किए गए बेल-इन प्रावधानों से बैंक के ग्राहकों की जमा रकम पर खतरा नहीं आएगा. केन्द्र सरकार ने इन्हें भ्रांति करार देते हुए 11 अगस्त 2017 को लोकसभा में पेश एफआरडीआई बिल को संसद की ज्वाइंट समिति के विचार के लिए भेज दिया था.

लिहाजा संसदीय ज्वाइंट समिति ने इस बिल पर सभी हितधारकों से राय ली. ज्वाइंट समिति ने यह भी जानने की कोशिश की कि बैंकों के स्वास्थ और बैंक ग्राहकों के सुरक्षा मानदंडों को अधिक मजबूत कैसे किया जा सकता है.

केन्द्र सरकार के मुताबिक मौजूदा समय में बैंक के प्रत्येक ग्राहक को 1 लाख रुपये तक के डिपॉजिट को डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन के तहत सुरक्षा दी जाती है. वहीं 1 लाख रुपये से अधिक के डिपॉजिट को किसी तरह की सुरक्षा नहीं दी जाती और उसे असुरक्षित ऋणदाता के दावे के समकक्ष माना जाता है. लिहाजा, प्रस्तावित बिल में केन्द्र सरकार ने मौजूदा सुरक्षा देने के साथ-साथ असुरक्षित पैसे के भी सुरक्षा मानदंड को बढ़ाने की पेशकश की थी.

केन्द्र सरकार का दावा है कि एफआरडीआई बिल बैंक ग्राहकों के हितों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है जबकि अन्य जगहों पर बेल-इन प्रावधानों में क्रेडिटर और डिपॉजिटर के मंजूरी का प्रावधान नहीं रहता है. वहीं प्रस्तावित कानून में सरकारी बैंको समेत सभी बैंकों के फाइनेनसिंग और रेजोल्यूशन की सरकार की शक्तियों में भी किसी कटौती का प्रस्ताव नही किया गया है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *