सोनागिर — मिट्टी देना प्रकृति का काम है मगर उसे आकार देना हमारा काम है। कुछ लोग उस मिट्टी से स्वयं के रहने के लिए  मिट्टी से घर बना लेते हैं और कुछ लोग मंगल कलश का निर्माण कर लेते हैं। आज का पुरुषार्थ कल के भाग्य का निर्माण करता है आज अगर सुंदर होगा तो कल इससे भी अधिक सुंदर होगा इसलिए कार्य करने में बहाने मत बनाओ जो करना है आज अभी इसी वक्त कर डालो कल किसने देखा है। यह विचार क्रांतिवीर मुनि प्रतीक सागर जी महाराज ने सोनागिर स्थित आचार्य पुष्पदंत सागर सभागृह मैं धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही!

मुनि श्री ने कहा कि जो वर्तमान में जीते हैं स्वर्ग की जिंदगी जीते हैं और जो भविष्य के सपने देखते रहते हैं उनकी जिंदगी नरक तुल्य हो जाती है तीर्थंकरों ने स्वयं के लिए कोई सपने नहीं देखे उनकी माता ने 16 सपनों को देखा । जिन्हें तीर्थंकरों ने पूर्ण किया जो दूसरों के सपनों को पूरा करते हैं उनके स्वयं के स्वप्न स्वयं पूर्ण हो जाते हैं। 

मुनि श्री प्रतीक सागर जी महाराज ने कहा कि मानव जाति के उद्धार के लिए स्वयं के अंदर की स्वार्थ की भावना को मारना जरूरी है जो स्वयं के स्वार्थ पूर्ण करने के लिए सोचते हैं वह कभी भी मानव जाति का कल्याण नहीं कर सकते हैं। स्वार्थी व्यक्ति तोड़ सकता है मगर टूटे हुए को जोड़ नहीं सकता दुनिया की सबसे बड़ी साधना स्वार्थ का त्याग करना है जो व्यक्ति स्वार्थी होते हैं वह अकेले रह जाते हैं और जो परमार्थी बनकर के जीते हैं दुनिया उनकी दीवानी हो जाती है आज माता-पिता भी बच्चों के लिए जो कुछ करते हैं उसके पीछे उनका स्वार्थ छुपा होता है की संतान बुढ़ापे में हमारा ध्यान रखेगी जिस कारण आज राम, महावीर, श्रवण कुमार जैसे पुत्र इस दुनिया में देखने को नहीं मिलते। माता पिता को अपनी संतान से गाय और बछड़े की तरह प्रेम करना चाहिए। गाय पाल पोस कर के संतान को बढ़ा करती है जब दूध देने लायक हो जाता है तो दुनिया  के सुख के लिए छोड़ देती है। उसके ऊपर अपना अधिकार नहीं जमाती है। माता-पिता को भी चाहिए वह अपना कर्तव्य पूर्ण करें मगर संतानों के ऊपर अधिकार ना जमाए अधिकार की भाषा बच्चों के अंदर माता पिता के प्रति सम्मान की भावना को खत्म कर देती हैं और संतानों को भी चाहिए जिन माता-पिता ने अपनी जिंदगी के अनमोल पल तुम्हारी सुख और सुविधा में गुजारे हैं उनकी आंखों में तुम्हारे कारण कभी आंसू नहीं आना चाहिए क्योंकि माता पिता देवता के तुल्य है भारत देश में राष्ट्र, गुरु, अतिथि, माता पिता, को देवता समझकर पूजा जाता है। जो बच्चे माता पिता को दुखी करके अपने लिए भगवान से सुख की प्रार्थना करते हैं भगवान उनकी वह प्रार्थना कभी स्वीकार नहीं करते है।

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