अपने बच्चे होने के बावजूद किसी और के निराश्रित बच्चे को अपनाना, उसे माता-पिता का प्यार देना और अपने बच्चों की तरह ही परवरिश करना आसान नहीं होता, वह भी तब, जब पालने वाले और बच्चे का धर्म अलग-अलग हो। लेकिन शहर का एक जैन परिवार ऐसी ही मासूम बच्ची का बीते आठ साल से पालनहार बना हुआ है। दो माह की मासूम को जब उसकी मां छोड़कर चली गई तो पास में रहने वाले जैन परिवार की ममता उस पर उमड़ी।
उन्होंने बच्ची को अपना लिया। बाद में जब उन्हें पता चला कि कानूनी प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है तो 8 साल बाद वे बच्ची को विधिवत गोद लेने के लिए दत्तक ग्रहण शिविर में पहुंचे। तिलकनगर निवासी जैन परिवार की महिला रंजना सोमवार को आठ साल की बच्ची के साथ दत्तक ग्रहण शिविर पहुंची। उन्होंने बच्ची का नाम सना बताते हुए उसे कानूनी रूप से फोस्टर केयर में लेने की बात कही। शिविर में मौजूद अफसरों ने जब महिला से पूरा वाकया सुना तो सभी ने इस प्रयास की प्रशंसा की।
दो माह की मासूम बिलख रही थी… उसके आगे कुछ नहीं सूझा
रंजना ने बताया उनके पति रेलवे स्टेशन पर ट्राली लगाते हैं। आठ साल पहले पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम परिवार की महिला अपनी दो माह की बच्ची को छोड़कर कहीं चली गई। जबकि पिता परवरिश करने में असमर्थ थे। मासूम बच्ची बिलख रही थी, मुझसे रहा नहीं गया। बच्ची को गले लगाया तो ऐसा लगा मानो मेरी अपनी बच्ची है। उसी समय तय कर लिया कि हम इसे अपने बच्चे के साथ पालेंगे। तब से ही बच्ची हमारे परिवार का हिस्सा है। सना को अपनी बेटी की तरह पाला-पोसा। न तो उसका नाम बदला न ही उपनाम।
सोमवार को कानूनी रूप से फोस्टर केयर में लिया
शिविर में जैन दंपती ने सना को कानूनी रूप से फोस्टर केयर में लिया ताकि भविष्य में किसी तरह की कानूनी अड़चन का सामना न करना पड़े। जैन दंपति का बेटा बेटाकॉलेज में पढ़ता है। वह भी सना को छोटी बहन की तरह प्यार करता है। मां-बेटी का शिविर में सम्मान भी किया गया था। संयुक्त संचालक राजेश मेहरा ने बताया कि जैन समाज की यह पहल समाज के लिए अनुकरणीय है। अगर लोग ऐसे ही अपने आसपास के निराश्रित बच्चों को आश्रय और प्यार देंगे तो कई को अच्छी जिंदगी मिल सकती है। सना की परवरिश के लिए फोस्टर केयर से परिवार को 2 हजार रुपए दिए जाएंगे।