‘किस्मत का खेल’ शायद इसे ही कहते हैं। इसलिए तो उस मासूम की मोहनी सूरत भी जननी को मोह नहीं सकी। उसने 9 माह तो कोख में रखा लेकिन, जन्म देते ही मुंह फेर लिया। किसी तरह पिता ने 11 माह कलेजे से लगाकर रखा पर जब परवरिश उसके वश में न रही तो मसूम की छांव वही आश्रयगृह बना जहां उसका पिता पला था।

बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के सामने सोमवार को आए एक मामले ने साफ कर दिया कि ‘ममता’ की डोर भी अब मजबूत नहीं रह गई है। राजधानी में दो साल से युवक-युवती लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे थे। लेकिन यह रिलेशनशिप मासूम के जन्म के साथ ही बिखर गई। युवक एक होटल में काम करता था, जहां से उसे तीन हजार रुपए प्रतिमाह मिलते थे। लिहाजा युवती ने नवजात बेटे से मुंह फेरकर युवक से भी रिश्ता तोड़ लिया। अब युवक के सामने मासूम की परवरिश की बड़ी जिम्मेदारी थी, किसी तरह नौकरी के साथ कुछ समय तक युवक ने बच्चे की देखभाल भी की, लेकिन जब परवरिश मुश्किल हुई तो युवक बेटे को लेकर बाल कल्याण समिति के सामने पहुंच गया। युवक के आग्रह पर समिति ने मासूम की जिम्मेदारी मातृछाया संस्था को सौंप दी।

अच्छे पालन-पोषण की उम्मीद से बेटे को खुद से दूर तो कर दिया लेकिन मन नहीं मानता था तो युवक रह-रहकर बेटे को देखने मातृछाया पहुंच जाता था। सोमवार को वह एक बार फिर बाल कल्याण समिति के सामने पहुंचा और इस बार उसने कहा कि वो बेटे से दूर नहीं रह सकता इसलिए जहां बेटा रहे वहीं उसे भी नौकरी दिला दी जाए। मातृछाया में यह संभव नहीं था, इसलिए समिति ने मासूम की जिम्मेदारी शहर की नित्यसेवा सोसायटी आश्रयगृह को सौंपी, जहां युवक को भी गार्ड की नौकरी मिल गई। यह वही आश्रयगृह है जहां युवक भी पलकर बड़ा हुआ था।

सोमवार को समिति के सामने चार मामले रखे गए। इनमें एक अन्य मामले में रेलवे चाइल्ड लाइन ने डिंडौरी से भागी एक 12 साल की बालिका को पेश किया था। बालिका ने बताया कि माता-पिता लड़ाई कर रहे थे, पिता ने उसे भी डांटा इसलिए वह घर से भाग गई। वहीं, छिंदवाड़ा से 12 साल की एक बालिका घर छोड़कर भाग गई थी, जिसे समिति ने बालिका गृह भेजा। भोपाल रेलवे चाइल्ड लाइन पुणे से भागकर भोपाल पहुंचे एक 16 वर्षीय बालक को समिति ने लोक उत्थान भेज दिया।

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