इंदौर ! यह सुनने में आपको अजीब लग सकता है और शायद पहली बार आप यह सुन रहे हों, लेकिन यह सच है और इस परियोजना पर काम भी शुरू हो चुका है। जी हाँ, अब धरती के नीचे से सुरंगनुमा नहरें निकाली जाएगीं और इनके ऊपर मिटटी डालकर किसान अपनी जमीन में खेती भी कर सकेंगे। अब तक नहरें खुली होती है और किसानों से इसके लिए जमीन का अधिग्रहण करना पड़ता है।
इंदौर से करीब 250 किमी दूर मंदसौर जिले के भानपुरा के पास ऐसी एक नहर ने आकार लेना भी शुरू कर दिया है। भारत की आज़ादी के बाद शुरूआती चार बड़े बांधों में शुमार और चंबल नदी पर बना एशिया का सबसे बडा मानवनिर्मित (जिसमें किसी मशीन का इस्तेमाल नहीं किया) गांधीसागर बाँध के पानी को इसके जरिए रेवा नदी तक ले जाया जाएगा। रेवा नदी से निकली नहरों के जरिए इलाके की करीब 80 हजार एकड़ खेती सिंचित हो सकेगी वहीँ रास्ते में पडऩे वाले 36 गांवों को इससे पीने का पानी भी मिल सकेगा। इसके लिए किसानों से उनकी जमीन का कुछ हिस्सा दो सालों के लिए लीज पर लेकर निर्माण किया जा रहा है। दो साल बाद मिट्टी भरकर उनकी जमीन फिर उन्हें लौटा दी जाएगी।
निर्माण कंपनी यहाँ नहर बनाने के लिए जमीनी सतह से करीब 25 मीटर नीचे खुदाई कर रही है। इसमें सीमेंट के ब्लाक लगाकर पानी बहाया जाएगा, जबकि इसके ऊपर मिटटी भरकर पूर्ववत खेती होती रहेगी। भानपुरा के पास बाँध के जल भराव क्षेत्र के कंवला गाँव में दोमुंही सुरंग भी बनकर तैयार हो चुकी है। यहाँ से बाँध के पानी को पहले रेवा नदी में ले जाया जाएगा। कंवला से ही दो चौकोर पाइपलाइन के जरिये पानी भूमिगत नहरों से बहेगा। यह पानी यहाँ से दूर राजस्थान के भवानीमंडी के पास बसे मप्र के गाँव भैंसोदा तक ले जाया जाएगा।
इनका कहना है
इसमें करीब 7.7 किमी नहर जमीन के नीचे से और 1.2 किमी खुली नहर बनाई जा रही है। किसानों से करीब 4.3 किमी जमीन लीज पर ली है और उन्हें मिट्टी भरकर लौटा देंगे। इससे बड़े क्षेत्र में सिंचाई हो सकेगी। दो सालों में यह बनकर तैयार हो सकेगी।
बनवारीलाल सैनी,
डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर, सदभाव इंजीनियरिंग कंपनी, अहमदाबाद