मुरैना। चंबल के किसानों के सामने एक ऐसी परेशानी आ खड़ी हुई है, जिससे निपटने के बारे में यहां के किसानों को कुछ भी नहीं पता। 10 साल बाद ऐसा हुआ है जब करोड़ों की संख्या में ग्रास हॉपर (टिड्डों) ने चंबल अंचल के खेतों में लहलहा रही बाजरे की फसल पर हमला कर दिया है।

कृृषि विभाग के मुताबिक प्रकोप ग्रस्त खेतों में बाजरे के एक पौधे पर 5 से 7 टिड्डों का कब्जा है। इनकी संख्या 10 करोड़ के आसपास होने का अनुमान है। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय की संस्था टिड्डा चेतावनी संगठन(एलडब्लयूओ) फरीदाबाद के विशेषज्ञों के मुताबिक इस परेशानी से निपटना किसानों के बस की बात नहीं है। इससे अब कृषि विभाग को ही निपटना होगा। ऐसा न होने पर इनकी संख्या दो से तीन गुनी हो जाएगी।

इस बार अंचल में अच्छी बारिश से किसान खुश थे, लेकिन इस खुशी पर टिड्डों ने ग्रहण लगा दिया है। अनुकूल वातावरण मिलने के कारण टिड्डों में संख्या विस्फोट हुआ है। चंबल संभाग के श्योपुर जिले की विजयपुर अन्य तहसीलों में इन टिड्डों के झुंड ने बाजरे के 70 फीसदी पौधों को चट कर लिया है।

इधर मुरैना में सबलगढ़ सहित 6 विकास खंडों में टिड्डे लगातार फसलों को चौपट कर रहे हैं। भिंड का भी यही हाल है। कृषि विभाग टिड्डों के प्रकोप का सर्वे करवा रहा है। उप संचालक कृषि मुरैना पीसी पटेल का कहना है कि उन्होंने खेतों में एक पौधे पर 5 से 7 टिड्डों की मौजूदगी पाई है। अंचल में लंबे समय के बाद ऐसी आपदा दिखाई दी है। इससे पहले अंचल में टिड्डों के लिए वातावरण इतना अनुकूल नहीं रहा है।

असमान्य जलवायु में फल फूल रहे टिड्डे

पीजी कॉलेज के प्राणीशास्त्र विभाग अध्यक्ष डॉ. विनायक तोमर के मुताबिक अधिक बारिश होने और तापमान में नमी और आर्द्रता के जल्दी-जल्दी घटने-बढ़ने से कैलीफैरा प्रजाति के टिड्डों का लार्वा जिसे निंफ कहते हैं ये अच्छी तरह से पनप रहा है।

महज 3 से 4 हफ्ते में लार्वा से बनने वाले टिड्डे वयस्क होकर फिर से लार्वा बना रहे हैं। जिससे इनकी संख्या तेजी से मल्टीप्लाय हो रही है। प्रभावित क्षेत्रों में इनका औसत 1 हजार से 1400 टिड्डे प्रति बीघा तक है। यानी अकेले मुरैना जिले के 90 हजार हेक्टेयर बाजरे के रकबे में 10 करोड़ से ज्यादा टिड्डे मौजूद होने की आशंका है। जो जल्दी ही दुगने हो जाने वाले हैं।

10 साल बाद हुआ इतना बड़ा हमला

कृषि विभाग के रिकॉर्ड बताते हैं कि साल 2008-09 में इसी तरह से असामान्य जलवायु के कारण टिड्डों ने हमला किया था। उसके बाद कभी टिड्डों ने इतना बड़ा हमला नहीं किया। यही वजह है कि यहां के किसान इस कीट से निब्पटने के लिए अभ्यस्त नहीं है। नहीं यहां कृषि विभाग के पास इनसे निबटने की तैयारी है।

ट्टिड्डे की खासियत

-टिड्डे अपने मुखाांग यानी एंटनी से गुदेदार तने वाले पौधों से मीठा रस चूसते हैं और पत्तियां खाते हैं

-इन्हें कम आक्सीजन की जरूरत होती है, इसलिए एक सांस में ये 5 से 50 किमी तक आगे बढ़ जाते हैं।

-इनमें उपापचयन की प्रक्रिया धीमी होती है। इसलिए इन्हें जिस फसल से पोषण मिलता है, उसकी तरफ ही यह आकर्षित होते हैं

-3 से 4 हफ्तों में यह अपनी संख्या दो गुनी कर सकते हैं

किसान ये करें उपाय

-किसान खेतों में भूसा उड़ाएं, इससे टिड्डों के श्वसन में अवरोध होता है और वे मर जाते हैं

-किसान कृषि विशेषज्ञों की सलाह से खेतों में मैलाथिआन के पाउडर या केमिकल का छिड़काव कर सकते हैं।

इनका कहना है

हमने टिड्डों के प्रकोप को देखते हुए फील्ड आफीसर्स से रिपोर्ट मांगी है। मुरैना के सबलगढ़ क्षेत्र में इनका प्रकोप ज्यादा है। आम तौर पर यहां कभी टिड्डों का इतना प्रकोप नहीं होता। मैने भी भ्रमण के दौरान एक-एक पौधे पर 5 से 7 टिड्डे बैठे देखे हैं। इस समस्या से निपटने के लिए सभी उपाय किए जा रहे हैं।

पीसी पटेल, उप संचालक कृषि मुरैना

ग्रास हापर यानी टिड्डे असामान्य जलवायु में तेजी से पनपते हैं। ये बहुत कम समय में अपनी संख्या को मल्टीप्लाय करते हैं। इनकी संख्या करोड़ों में पहुंच जाती है। ये झुंड बनाकर फसल पर हमला करते हैं। किसान इस पर आसानी से नियंत्रण नहीं कर सकते। क्योंकि वे अपने खेत में दवा डालकर इन्हें नष्ट करेंगे तो ये दूसरे खेत से उड़कर आ जाएंगे। इसके लिए स्थानीय कृषि विभाग को इलाके में मैलाथिआन का पावर स्प्रे कराना होगा। वहां के लिए यह समस्या नई है। इसलिए हो सकता है कि वहां के किसान इससे बचाव के उपाय नहीं जानते होंगे।

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