नई दिल्ली ! सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को एक गर्भवती दुष्कर्म पीड़िता की याचिका पर महान्यायवादी और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया। याचिका में पीड़िता ने भ्रूण के असामान्य विकास को देखते हुए अपने 24 हफ्ते के गर्भ को खत्म कराने की इजाजत मांगी है। न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति अरुण मिश्र ने चिकित्सक की रिपोर्ट देखने के बाद इस पर शुक्रवार को सुनवाई करने का निर्देश दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि भ्रूण का पेट खुला है और उसकी आंतें बाहर विकसित हो रही हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्वेस ने अदालत को बताया कि भ्रूण का सिर भी पूरी तरह विकसित नहीं हुआ है। बच्चे के पैदा होने के बाद बचने की संभावना शून्य से कुछ घंटे के बीच है।
पीड़िता ने अदालत से अपने गर्भपात के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट 1971 की धारा 3 (2) तहत निर्देश देने की मांग की है। ऐसा इस वजह से है क्योंकि कानूनन 20 हफ्ते से अधिक के गर्भ को खत्म नहीं किया जा सकता।
पीड़िता ने इस प्रावधान की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी है।
लेकिन, एमटीपी कानून की धारा 5 के तहत 20 हफ्ते से अधिक के गर्भ को उस स्थिति में खत्म करने की इजाजत दी गई है जिसमें मां की जान को खतरा हो।
मौजूदा मामले में मां की जान को तो खतरा नहीं है, लेकिन भ्रूण असामान्य है और उसके बचने की संभावना नहीं के बराबर है।
पीड़िता की ओर से कहा गया है कि 20 हफ्ते की ऊपरी सीमा के इस कानून को वर्ष 1971 में सही ठहराया जा सकता था, जब प्रौद्योगिकी इतनी विकसित नहीं थी। अब तो 26 हफ्ते बाद भी सुरक्षित ढंग से गर्भपात कराया जा सकता है।
कोलिन गोंसाल्वेस ने अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, डेनमार्क, चीन जैसे कई देशों उदाहरण दिया जहां गर्भपात कानून में समय की कोई ऊपरी सीमा तय नहीं है।