नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट मीटिंग में आज मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) बिल, 2020 को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में संशोधन का रास्ता साफ हो गया है। यानी अब महिलाएं गर्व के 24 वें हफ्ते में भी गर्भपात करा सकेंगे। इसके लिए उन्हें किसी मेडिकल की जरूरत नहीं होगी। हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में मांग की गई है कि अविवाहित एवं विधवा महिलाओं को किसी भी समय गर्भपात की अनुमति दी जाए।
पिछले साल गर्भपात कराने की अवधि बढ़ाने को लेकर कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले साल अगस्त में दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि गर्भवती महिला के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उसके गर्भपात की समयसीमा 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते करने को लेकर मंत्रालय ने विचार-विमर्श शुरू कर दिया है।
सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि संबंधित मंत्रालय और नीति आयोग की राय लेने के बाद गर्भपात संबंधी कानून में संशोधन के मसौदे को जल्द ही अंतिम रूप दिया जाएगा जिसके बाद उसे कानून मंत्रालय के पास भेज दिया जाएगा ताकि गर्भपात संबंधी कानून पर जरूरी संशोधन हो सके।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाई कोर्ट को यह भी बताया कि उसने गर्भपात संबंधी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेन्सी (एमटीपी) कानून, 1971 में संशोधन को लेकर अपना मसौदा कानून मंत्रालय के पास भेज दिया है।
इसके बाद, कानून मंत्रालय ने स्वास्थ्य मंत्रालय को कहा था कि अभी संसद के दोनों सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित है। ऐसे में नई सरकार बनने के बाद इस मुद्दे पर गौर करेंगे। स्वास्थ्य मंत्रालय ने तत्कालीन चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी. हरिशंकर की बेंच के सामने हलफनामा दाखिल किया था।
मंत्रालय ने यह हलफनामा याचिकाकर्ता और वकील अमित साहनी की जनहित याचिका के मामले में दाखिल किया। अमित साहनी ने अपनी याचिका में कहा था कि महिला और उसके भ्रूण के स्वास्थ्य के खतरे को देखते हुए गर्भपात कराने की अवधि 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते कर दी जाए। इसके अलावा अविवाहित महिला और विधवाओं को भी कानूनी रूप से गर्भपात कराने की अनुमति दी जाए।
अमित साहनी ने अपनी इस जनहित याचिका में कई व्यावहारिक दिक्कतों का भी जिक्र किया था जो समाज में गर्भधारण के बाद महिलाओं को झेलनी पड़ती है। याचिका में यह भी कहा गया कि जिस तरह से गर्भधारण का अधिकार महिला के पास है उसी तरह से गर्भपात कराने का भी अधिकार महिला के पास होना चाहिए।
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एथिक्स के लेख के अनुसार नेपाल, फ्रांस, इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया, इथोपिया, इटली, स्पेन, आइसलैंड, नार्वे, फिनलैंड, स्वीडन और स्विट्जरलैंड समेत 52 फीसदी देशों में बच्चे में विसंगतियां पाए जाने पर 20 हफ्ते से ज्यादा होने पर गर्भपात की इजाजत है। जबकि डेनमार्क, घाना, कनाडा, जर्मनी, विएतनाम, और जाम्बिया सहित 23 देशों में किसी भी समय गर्भपात की अनुमति है।