भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की कलेक्टर तरुण पिथोड़े की बड़ी लापरवाही सामने आई है। ना केवल उन्होंने अपनी जान खतरे में डाली बल्कि जिला प्रशासन के सभी बड़े अधिकारियों की जान खतरे में डाल दी। यह बेहद खतरनाक कदम है। सरकार को ऐसे सभी कलेक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
राजधानी भोपाल स्थित कलेक्ट्रेट में आज हुई टाइम लिमिट की मीटिंग में ना तो अधिकारियों की स्क्रीनिंग कराई गई और ना ही किसी ने मांस का पहना हुआ था। जिस हाल में टाइम लिमिट की मीटिंग हुई उसका सैनिटाइजेशन भी नहीं किया गया था। अधिकारियों की बैठक व्यवस्था बिल्कुल वैसी ही थी जैसे हमेशा रहती है। जबकि कोरोना वायरस से बचने के लिए दो व्यक्तियों के बीच 1 मीटर का फासला होना जरूरी है। यदि इस भीड़ में किसी एक व्यक्ति को कोरोनावायरस है, तो कहने की जरूरत नहीं कि कलेक्टर तरुण पिथोड़े सहित पूरा जिला प्रशासन खतरे में है।
बड़ा सवाल है। कोरोना वायरस के कारण जब मध्यप्रदेश की विधानसभा को स्थगित
कर दिया गया है तो फिर टाइम लिमिट की मीटिंग को स्थगित क्यों नहीं किया
गया। कलेक्टर चाहते तो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भी मीटिंग का आयोजन कर
सकते थे। मध्य प्रदेश सरकार ने उन सभी आयोजनों पर प्रतिबंध लगा दिया है
जिनमें 20 से अधिक संख्या उपस्थित होती हो, कलेक्टर कार्यालय में हुई
मीटिंग में कलेक्टर के आदेश पर 20 से अधिक अधिकारी उपस्थित हुए। क्या यह
मीटिंग सरकारी आदेश का उल्लंघन नहीं है।
प्रश्न स्वाभाविक रूप से उपस्थित होता है। क्या भोपाल एवं मध्य प्रदेश में सचमुच कोरोना वायरस का खतरा है या फिर किसी साजिश के तहत तमाम तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। क्योंकि इन सभी प्रतिबंधों का पालन केवल जनता द्वारा कराया जा रहा है। सरकारी दफ्तरों में कोरोना वायरस से बचने के लिए किसी भी तरह का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। क्यों नहीं है मान लिया जाए कि कलेक्टर को मालूम है भोपाल में कोरोनावायरस का कोई खतरा नहीं है। बावजूद इसके किसी साजिश के तहत उन्होंने सारे प्रतिबंध लगाए हैं।