भोपाल। सरकार को अपना हर वचन निभाना है इस बात का ख्याल रखते हुए सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं का पैमाना विकसित करने की कवायद तेज़ हो गई है। कैंसर रोगियों के आंकड़ों को देखें तो प्रदेश में हर साल करीब 30 हजार लोगों की मौत कैंसर से हो रही है। सरकार चाहती है कि 15 सालों के बाद राज्य में हुए सत्ता के बदलाव का असर जनता को दिखना चाहिए। सरकारी अस्पतालों में गरीबों को निशुल्क और बेहतर इलाज मिले ये सुनिश्चित होना चाहिए। साथ ही सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्थाएं ना हों और मरीज़ों को इलाज के लिए भटकना ना पड़े, इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए। इन तमाम मुद्दों को लेकर स्वास्थ्य विभाग का अमला अब कैंसर के मरीज़ों के आंकड़े जुटा रहा है ताकि सरकारी अस्पतालों में कैंसर का पूरा इलाज मिल सके।
अभी तक की व्यवस्था के अनुसार सरकारी अस्पतालों में कैंसर के डॉक्टर तो बैठते हैं लेकिन कई तरह के इलाज ऐसे हैं जिनकी दवाओं और ट्राटमेंट के लिए मरीज़ों तो निजी अस्पतालों की शरण लेनी पड़ती है। से लेना पड़ता है।लेकिन अब ऐसी तमाम व्यवस्थाओं को बदलने के लिए स्वास्थ्य विभाग एक्शन में आ गया है। मरीज़ों को योजनाओं के साथ ही त्वरित चिकित्सा सेवाएं मिल सके इसकी कवायद शुरू हो गई है।
कैसर से जूझ रहे अधिकतर मरीज़ों की मानें तो मध्य प्रदेश में एक भी ऐसा शासकीय अस्पताल नहीं है जहां कैंसर के मरीजों को इलाज की पूरी और अच्छी सुविधा एक ही परिसर में मिल सके। अनिल शुक्ला जेपी अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक अनिल शुक्ला की मानें तो यही वजह है कि मध्य प्रदेश के 90 फीसदी से भी ज्यादा कैंसर मरीज मुंबई, नागपुर, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में इलाज के लिए जाने को मजबूर हो जाते हैं, जिससे जेब पर अत्याधिक भार पड़ जाता है। मध्य प्रदेश के 13 सरकारी मेडिकल कॉलेजों या भोपाल के एम्स में भी इलाज की सभी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।
एमपी में कैंसर रोगियों की संख्या और मौत
साल 2015 में 63314 मरीज़ों में 28078 की मौत
साल 2016 में 65739 मरीज़ों में 28391 की मौत
साल 2017 में 87831 मरीज़ों में 29846 की मौत
साल 2018 में 89318 मरीज़ों में 30764 की मौत
(आईसीएमआर रिपोर्ट में प्रस्तुत आंकड़े)