रायपुर। कलेक्टर कांफ्रेंस में नजूल जमीन का नियमितिकरण का टारगेट पूरा न करने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कलेक्टरों पर बेहद नाराज हुए। सीएम की नाराजगी ऐसी थी कि वीडियोकांफ्रेंसिंग से जुड़े कलेक्टर सकपका गए।

राज्य सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए नजूल की खाली जमीनों की नीलामी या फिर बरसों से सरकारी जमीनों पर कब्जा किए लोगों का नियमितिकरण करने के लिए कहा था। इसके लिए कलेक्टरों को टारगेट दिया गया था। उसमें केटेगरी बनाते हुए गाइडलाइंस तय किया गया था। इसके तहत कलेक्टर 7500 वर्गफीट तक के प्लाट को रेगुलराइज कर सकते हैं।

पहले केटेगरी मेें सरकारी संस्थाओं को प्राथमिकता दी गई है। लेकिन, उन्हें बाउंड्री वॉल बनाना होगा। दूसरा, कोई स्थानीय निकाय, जो गाइडलाइंस रेट से 25 फीसदी अधिक राशि के साथ और तीसरा, प्रायवेट पार्टी को गाइडलाइंस दर पर। इसमें यदि एक प्लाट के लिए एक से अधिक लोग इच्छुक हों तो नीलामी किया जाए। और, यदि किसी के घर के पास अगर सरकारी जमीन है तो गाइडलाइंस रेट से डेढ़ सौ गुना अधिक रेट पर उसे बेचा जा सकता है।

अफसरों का कहना है कि राजस्व पुस्तक परिपत्र के अनुसार सरकार अनुपयोगी जमीनों को बेच सकती है। इससे खाली जमीनों का उपयोग होगा और जो लोग बेजा कब्जा करके सालों से बैठे हैं, उनका नियमितिकरण होगा। साथ ही सरकार को पैसा मिल जाएगा। रायपुर शहर में 35 सौ एकड़ में बेजा कब्जा है। वोट बैंक के चलते कोई भी सरकार इन जमीनों को खाली नहीं करा सकती।पिछले दिनों चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल ने कलेक्टरों की वीडियोकांफ्रेंसिग ली थी। मंडल से सभी कलेक्टरों ने सेल्फ टारगेट दिया था। कुछ बड़े जिलों के कलेक्टरों ने तो 100-100 करोड़ देने कहा था। बिलासपुर के तत्कालीन कलेक्टर संजय अलंग हालांकि, टारगेट बताने में आगे-पीछे हुए तो उन्हें बात भी सुननी पड़ गई थी। लेकिन, हुआ वहीं। किसी भी कलेक्टर ने लक्ष्य तो दूर की बात दस फीसदी भी राजस्व नहीं दिया।

कोंडागांव जैसे आदिवासी जिले ने जरूर 9 लाख के लक्ष्य के विपरीत 13 करोड़ राजस्व दिया। कोंडागांव कलेक्टर नीलकंठ टेकाम को सरकार ने जरूर हटा दिया लेकिन, बड़ी संख्या में उन्होंने जमीनों का नियमितिकरण किया। वहीं कई कलेक्टरों ने तो खाता भी नहीं खोला। तो कुछ बड़े जिले के कलेक्टर 20 से 25 लाख रुपए में सिमट गए। कलेक्टर कांफ्रेंस में जब ये मुद्दा आया तो सीएम भडक़ गए। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि जब काम नहीं कर सकते तो कलेक्टर पद पर रहने का कोई अधिकार नहींज्.छोड़ दें कलेक्टरी। उन्होंने यह भी कहा कि राजस्व नहीं दे सकते तो उन्हें वेतन लेने का भी हक नहीं।

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