ग्वालियर। भिण्ड जिले के अटेर विकास खण्ड में जल संसाधन विभाग की अरसे से बंद पडी चंबल कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना में कार्यरत रहे एक उपयंत्री केके चतुर्वेदी को लगभग दो करोड रुपए की राशि के अनियंत्रित भुगतान के मामले में प्रमुख अभियंता जल संसाधन मध्यप्रदेश ने विभागीय जांच में दोष सिद्ध पाए जाने पर अनिवार्य सेवानिवृत दे दी है, जबकि एक अन्य उपयंत्री एसके शर्मा 515.95 लाख रुपए के अनियंत्रित भुगतान के मामले में संचालित विभागीय जांच में दोषमुक्त पाए जाने पर दण्ड से बच गए है। इससे पूर्व जल संसाधन विभाग इसी परियोजना में करोडों रुपए के घोटाले में तत्कालीन एसडीओ एसके सब्बरवाल को भी अनिवार्य सेवानिवृत दे चुका है।
जल संसाधन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार चंबल नदी पर निर्माणाधीन कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना के काम पर प्रमुख अभियंता जल संसाधन मध्यप्रदेश ने 19 जून 2015 द्वारा वन विभाग की रोक होने के चलते प्रतिबंध लगाया था, इसके बावजूद परियोजना में काम कर रहे उपयंत्री केके चतुर्वेदी व एसके शर्मा द्वारा परियोजना के लिए पाइप लाइन की खरीदी करते हुए ठेकेदार को अनियमित भुगतान में सहायता प्रदान की गई। इस संबंध में दोनो ंउपयंत्रियों के विरुद्ध 17 जुलाई 2015 को विस्तृत विभागीय जांच प्रारम्भ की गई।
जांचकर्ता अधिकारी ने 20 अक्टूवर 2015 को प्रमुख अभियंता जल संसाधन मध्यप्रदेश को प्रस्तुत जांच प्रतिवेदन में स्पष्ट किया कि वन विभाग की रोक व प्रमुख अभियंता के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद उपयंत्री केके चतुर्वेदी द्वारा पाइप सप्लाई कार्य को जारी रखते हुए ठेकेदार को 198.61 लाख रुपए का भुगतान कराने में परोक्ष रुप से सहायता की गई। फलस्वरुप परियोजना पर किया गया व्यय निष्प्रयोगी हो गया,ं जिसमें उपयंत्री केके चतुर्वेदी दोषी है, जब कि एसके शर्मा उपयंत्री के माप पुस्तिका एवं प्रमाणकों में कहीं भी हस्ताक्षर नहीं है, केवल लाई शीट में उनका नाम लिखा गया है, इस आधार पर उन्हें दोषी नहीं माना जा सकता। प्रमुख अभियंता जल संसाधन ने एक दिसंबर 2015 को उपयंत्री केके चतुर्वेदी को म.प्र. सिविल संवा वर्गीकरण नियंत्रण तथा अपील नियम 1966 के नियम 10 (सात) के तहत अनिवार्य सेवानिवृत (बर्खास्तगी) करने का आदेश दिया।
भिण्ड जिले के अटेर विकास खण्ड में चंबल नदी के किनारे 1980 के दशक में शुरु हुई चंबल कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना में प्रारंभ से ही बडे पैमाने पर भ्रष्टाचार और घोटाले होते रहे है, जिसमें गुजरे वर्ष जल संसाधन विभाग के परियोजना के एक तत्कालीन एसडीओ एसके सब्बरवाल को भी करोडों रुपए के अनियमित भुगतान का दोषी पाए जाने पर नौकरी से ही बर्खास्त कर दिया गया था। परियोजना पर 35 वर्षों में तकरीवन 50 से 80 करोड रुपए तक की राशि खर्च हो चुकी है, पर परियोजना अब भी अधूरी पडी हुई है। अगर यह परियोजना शुरु हो जाए तो इससे अटेर विकास खण्ड के लगभग 200 से ज्यादा सिंचाई सुविधा से वंचित गांवों के किसानों की 15 हजार हैक्टेयर से अधिक जमीन को सिंचाई की सुविधा हो जाएगी।