भोपाल। ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद एमपी में कांग्रेस की सरकार गिर गई थी। सिंधिया अपने 22 विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए थे। महाराज के आने के बाद एमपी में फिर से शिवराज सत्ता में आ गए। बीजेपी ने बदले में ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा भेज दिया। अब एमपी में 28 सीटों पर उपचुनाव है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज की जोड़ी उपचुनाव में जीत के लिए मैदान में हैं। सिंधिया कांग्रेस में रहते हुए विधानसभा चुनाव के बाद कुछ खास कमाल नहीं कर पाए थे। इसलिए पार्टी में वह हाशिए पर चल रहे थे।

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुरुवार को एक चुनावी सभा के दौरान नारा दिया था कि एमपी में अब ‘शिव-ज्योति एक्सप्रेस’ चलेगी, जो पूरे प्रदेश में विकास की आंधी लाएगी। इस एक्सप्रेस की तुलना उन्होंने मोती-माधव एक्स्प्रेस से की थी। दरअसल, मोती-माधव एक्स्प्रेस में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोती लाल वोरा और सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया थे। इस जोड़ी ने एक समय में एमपी में खूब काम किया था। लेकिन सवाल है कि आखिर शिव-ज्योति एक्सप्रेस एमपी में कब तक चलेगी। क्योंकि उपचुनाव के नतीजों पर इस जोड़ी का भविष्य बहुत हद तक निर्भर करता है। सिर्फ जोड़ी ही नहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया का फ्यूचर भी इसी पर निर्भर करता है।

दरअसल, एमपी विधानसभा चुनाव 2018 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खूब मेहनत की थी। ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस को प्रचंड जीत दिलाई थी। 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में लौटी थी। सिंधिया समर्थकों को उम्मीद थी कि वह सीएम बनेंगे। लेकिन पार्टी नेतृत्व ने कमलनाथ को सीएम बनाने का निर्णय लिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया उसके बाद से ही नाखुश चल रहे थे। कांग्रेस नेतृत्व ने सियासी किचकिच को दूर करने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को एमपी से दूर कर दिया।

तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को यूपी में प्रियंका गांधी के साथ लगा दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया एमपी छोड़ कर यूपी में चुनाव की तैयारियों में लगे थे। खुद गुना-शिवपुरी से चुनाव लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे। सिंधिया पार्टी को यूपी में तो एक भी सीट नहीं दिला पाए। साथ ही एमपी में भी अपनी सीट गंवा बैठे। उसके बाद कुछ दिनों तक वह सक्रिय राजनीति से अलग हो गए।


ज्योतिरादित्य सिंधिया हार की वजह से कुछ दिनों सबसे कटे रहे। फिर उनके समर्थकों ने एमपी में उन्हें प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बनाने की मांग करने लगे। लेकिन लोकसभा चुनाव में हार की वजह से उन्हें तवज्जो नहीं मिली। सिंधिया अपने लोगों के जरिए सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश भी की। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी उन्हें नहीं मिली। इसके साथ ही पार्टी उन्हें राज्यसभा भेजने को भी तैयार नहीं थी।


कांग्रेस में अनदेखी से नाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सबसे बड़ा सियासी दांव खेला, जिसकी शायद किसी ने उम्मीद नहीं की थी। उन्होंने मार्च 2020 में कांग्रेस छोड़ने का ऐलान कर दिया। उसके बाद कांग्रेस खेमे में खलबली मच गई। सिंधिया के ऐलान के साथ ही कांग्रेस की सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे थे। सिंधिया बीजेपी में शामिल हुए और एमपी में उनके समर्थक विधायक और मंत्री गायब होने लगे। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद उनके समर्थक विधायक और मंत्रियों ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई।


बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की सभी मांगे पूरी की है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा भेजा है। साथ ही उनकी मांग के अनुसार शिवराज कैबिनेट में उनके 10 से ज्यादा लोगों को जगह दी है। साथ ही पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को एमपी में एक बड़े नेता के रूप में प्रोजेक्ट की है। साथ ही एमपी सरकार और संगठन में उनका अच्छा खासा दखल भी है। सिंधिया की हर बात मानी जाती है।


अभी बीजेपी ज्योतिरादित्य सिंधिया को तवज्जो इसलिए दे रही है कि शिवराज सरकार उनकी वजह से बनी है। लेकिन पार्टी में उनका आगे भी यही वजूद रहेगा, यह उपचुनाव के नतीजों पर निर्भर करेगा। 28 में से 16 सीटों पर सीधे रूप से ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा दांव पर है। यह उपचुनाव उनके गढ़ ग्वालियर-चंबल में हैं। अगर सिंधिया अपने समर्थकों को उपचुनाव में जीत दिलाने में कामयाब हो जाते हैं, तो बीजेपी में उनका जलवा आगे भी बरकरार रहेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *