लुमानी (नागालैंड) | राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश में गुणवत्तापूर्ण शैक्षणिक संस्थानों की कमी पर चिंता जताते हुए बुधवार को कहा कि उच्च शैक्षणिक संस्थानों को बेहतर बनाने की आवश्यकता है। नागालैंड विश्वविद्यालय के तीसरे दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा, “भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शैक्षणिक प्रणाली है। इसके बावजूद 18-24 साल के युवाओं का नामांकन देश में केवल सात प्रतिशत है, जबकि जर्मनी में यह 21 प्रतिशत और अमेरिका में 34 प्रतिशत है।”

उन्होंने कहा, “एक राज्य को छोड़कर देश के प्रत्येक राज्य में कम से कम एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। इसके बावजूद संख्या और गुणवत्ता की समस्या अब भी बरकरार है। हमारे यहां गुणवत्तापूर्ण अकादमिक संस्थानों की कमी है, जिसके कारण बहुत से अच्छे छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाते हैं।” राष्ट्रपति ने कहा, “दो लाख से अधिक भारतीय छात्र अमेरिका और ब्रिटेन सहित दूसरे देशों में पढ़ाई कर रहे हैं। हमें अपने छात्रों को अपने ही देश में गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा मुहैया कराने में सक्षम होना चाहिए।” उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। मुखर्जी ने कहा, “एक वक्त था जब हमारे पास नालंदा तथा तक्षशिला जैसे वैश्विक विश्वविद्यालय थे, जिसने दुनियाभर के विद्वानों को आकर्षित किया। हम अपनी खोई गरिमा वापस पा सकते हैं। हम अपने कम से कम कुछ अकादमिक शैक्षणिक संस्थानों को वैश्विक स्तर के संस्थानों के समकक्ष ला खड़ा करने में सक्षम हैं।” राष्ट्रपति ने विश्वविद्यालयों में फैकल्टी सदस्यों की कमी के मुद्दे को भी उठाया। उन्होंने कहा, “फैकल्टी सदस्यों की कमी के कारण शिक्षा के मानदंडों के सुधार के हमारे प्रयासों को नुकसान पहुंचा है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में करीब 38 प्रतिशत पद रिक्त हैं। रिक्तियों को भरने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए। इस समस्या के समाधान के लिए हम ई-क्लासरूम जैसी प्रौद्योगिकी का भी सहारा ले सकते हैं।”

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