सीता जी को त्रेतायुग में लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। भगवान शिव का धनुष तोड़कर विष्णुजी के अवतार श्रीराम ने स्वयंवर में सीता का वरण किया था। इसके बाद उन्होंने पतिव्रत धर्म निभाया और वनवास में भी अपने पति के साथ गईं। सीता नवमी पर उनकी पूजा विशेष लाभ दायी होती है।
वाल्मिकी रामायण में यह भी बताया गया है कि माता सीता पहले जन्म में वेदवती नाम की स्त्री थीं जो भगवान विष्णु को पाने के लिए तपस्या कर रही थीष एक दिन रावण वहां से गुजरा और उन्हें देखकर मोहित हो गया। इसके बाद उन्हें उनकी इच्छा की विरुद्ध अपने साथ ले जाने लगा। इस पर वेदवती ने रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री ही तेरे विनाश का कारण बनेगी। इसके बाद उन्होंने अगले जन्म में सीता का जन्म लिया।
माता सीता भगवान श्री राम और लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के लिए वनवास को गईं। इसी बीच रावण उन्हें उठाकर लंका ले गया। रावण ने माता सीता को लंका की अशोक वाटिका में रखा। लंका में माता सीता के पास राक्षसों का कड़ा पहरा था। ऐसे में माता सीता को भूख लगने पर वे क्या करेंगी, इसको लेकर देवराज इंद्र ने उनकी मदद की। उसी रात भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र ने सभी राक्षसों को मोहित कर के सुला दिया। फिर देवी सीता को खीर दी। वो खीर खाने के बाद उन्हें कभी भूख और प्यास नहीं लगी।