सोनागिर। इमारत जितनी भव्य और विशाल होती है उसकी नींव भी उतनी गहरी होती है। जीवन की धरती पर धर्म की इमारत खडी करने के लिए मानवता की गहरी नींव चाहिए। जिस व्यक्ति का हृदय मानवता के सद्गुणों से शून्य है उस व्यक्ति के द्वारा किए गए धार्मिक क्रियाकलाप सार्थक परिणाम देने में समर्थ नहीं हैं। यह बात क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्मसभा में संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

मुनिश्री ने कहा कि हृदय की पवित्रता ही धर्म का आधार है अतः व्यक्ति को अपने हृदय को शुद्ध बनाना चाहिए। हृदय की मलिनता धर्म की तेजस्विता को खत्म कर देती है। धर्म की साधना करने के पूर्व मानवता के सद्गुणों का विकास बेहद जरुरी है। मानवता की नींव पर ही धार्मिकता का महल खडा होता है।

मुनिश्री ने कहा कि गृहस्थ जीवन में धन की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता। अर्थ के बिना सब व्यर्थ है। मगर धन का उपार्जन न्याय नीति से होना चाहिए। अन्याय से अर्जित धन जीवन में मुसीबतों की फौज लेकर आता है। जो व्यक्ति पापकर्म करके धन कमाते हैं उनका यह लोक शोक और दुखमय होता है और परलोक में नरक आदि दुर्गति के मेहमान बनते हैं। इस सत्य को दृष्टि के समक्ष रखकर ही जीवन के सफर को तय करना चाहिए।

मुनिश्री ने कहा कि आज आकृति के मनुष्य तो सभी हैं मगर प्रकृति के मनुष्य मिलना बेहद कठिन है। इंसान का इंसान बने रहना भी एक बडी साधना है। वही व्यक्ति सुखी होता है जिसके मन में निर्भयता है। निर्भयता आती है न्याय नीति के पथ पर चलने से। अतः जीवन की डोर न्याय नीति से बंधी होनी चाहिए।

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