राजेश जायसवाल पुलिस विभाग के लिए सबसे बड़ी दुर्भाग्य की बात यह है कि अक्सर उनका रोल (काम) विलेन जैसा होता है लेकिन सभी लोग उन्हें नायक (हीरो) के रूप में देखना पसंद करते हैं। यह कैसे संभव है। समस्या की जड़ कई कारणों में होती है जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, किसान, बिजली, पानी, धार्मिक, राजनीतिक या अन्य जिसके कारण प्रदर्शन, आंदोलन होते रहते हैं जो कभी-कभी उग्र रूप धारण कर लेते हैं। पुलिस को सर्वप्रथम इन्हीं का सामना करना पड़ता है। कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए बल प्रयोग भी करना पड़ता है, तब आम जन और सभी पुलिस को ही कोसते हैं और पुलिस के विरोध में होकर पुलिस पार्टी बन जाती है। मूल समस्या को भूलकर पुलिस की छबि खराब होती है। यदि ऐसे में पुलिस कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सख्ती नहीं करती है तो उन पर कावर्डनेस (डरपोक) होने का आरोप लगता है। देखा जाए तो शुरूआत यहीं से हो जाती है। कानून-व्यवस्था बनाए रखने के पुलिस को प्रशासनिक अधिकारियों पर ही निर्भर रहना पड़ेगा और जांच भी उनके नाम की होगी। क्राइम कंट्रोल में पुलिस की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रभावी होती है। पुलिस को इसमें दक्षता होती है जैसे राजस्व अधिकारियों को भूमि व अन्य मामलों में। फिर आदतन अपराधी को डील करने के मामले में पुलिस को अधिक जानकारी और ज्ञान होता है। कुख्यात और आदतन अपराधी पर नियंत्रण करने का एक ही तरीका है कि वह जेल के अंदर रहे या उसमें इतना भय या खौफ हो कि वह अपराध करने से डरे। कितना भी बड़ा नामी अपराधी हो वह पुलिस की हिरासत से या पुलिस की हवालात से डरता है-उसे जेल जाने या दूसरी किसी बात से उतना भय नहीं रहता। किसी भी शहर का विकास वहां की सुचारू कानून-व्यवस्था पर बहुत अधिक निर्भर करता करता है। विभिन्न प्रांतों के महानगरों में काफी अर्से से पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागु होकर चली आ रही है। यदि यह प्रणाली प्रभावी नहीं होती तो कब से बंद कर दी गई होती। मप्र के इंदौर और भोपाल भी महानगर की श्रेणी में आ गए हैं। इस विचार से कि इस प्रणाली से पुलिस निरंकुश हो जाएगी, यह सर्वथा गलत और भ्रामक है। जितनी त्वरित कार्यवाही पुलिस कर्मचारी/अधिकारी के विरूद्ध होती है, तुरंत सस्पेंड, लाईन अटैच आदि, उतनी किसी अन्य विभाग में नहीं। वैसे भी पुलिस विभाग द्वारा जो प्रस्ताव पुलिस कमिश्नर प्रणाली के लिए भेजा गया है, उसमें बहुत सीमित अधिकार चाहे गए हैं जोकि अन्य महानगरों में प्रदत्त अधिकारों से बहुत ही कम हैं। मा. मुख्यमंत्री जी को जिन्हें एक लंबा सार्वजनिक और राजनीतिक अनुभव है और जो ज्यादातर जनता के बीच रहते हैं, जमीन से जुड़े हुए हैं, उनके द्वारा भी समस्याओं को गंभीरता से समझा और अनुभव किया गया होगा, तभी उनके मन में यह विचार आया होगा। इस प्रणाली को लागू करने से कोई बहुत बड़ा संकट नहीं आने वाला, जैसा कि इसका विरोध किया जा रहा है। मैं भी इंदौर-भोपाल में सिटी एसपी के पद पर काफी लंबे समय तक रहा हूं। वर्तमान परिस्थितियों में इस प्रणाली को लागू किया जाना बहुत जरूरी और आवश्यक हो गया है। पुलिस के लिए भी यह बड़ी चुनौती है, लेकिन दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है। पुलिस अपने सीमित संसाधनों के साथ इसे प्रभावी रूप से लागू कर जन भावना के अनुरूप अपने मकसद में कामयाब होगी। 0 राजेश जायसवाल, रिटायर्ड रेंज सुप्रिंटेंडेंट आॅफ पुलिस ( AJKइंदौर), रिटायर्ड गजेटेड पुलिस आफीसर्स वेलफेयर सोसायटी, इंदौर